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यूसुफ साहब की कहानी, उनकी फिल्मों की जुबानी

नई दिल्ली, 21 जुलाई। पेशावर के मूल निवासी यूसुफ खान को प्रतिष्ठित बॉम्बे टॉकिज में देविका रानी के माध्यम से सबसे पहले “ज्वार भाटा” में काम और दिलीप कुमार नाम मिला। वह हिन्दी सिनेमा में “नया दौर” लेकर आए और अपने खास “अंदाज” से देश-दुनिया के फिल्म प्रेमियों के दिलों में रच बस गए। सभ्य, सुसंस्कृत, कुलीन चरित्रों के माध्यम से उस दौर में उनका अभिनय फिल्म जगत में किसी “क्रांति” से कम नहीं था।
दिलीप कुमार ने सिनेमा के पर्दे पर दर्शकों को अपनी कला का विविध रूपों में “दीदार” कराया। बॉलीवुड के “कोहिनूर” यूसुफ साहब ने “देवदास” में असफल प्रेमी के तौर पर ऐसी छाप छोड़ी कि लोग उन्हें ट्रेजडी किंग ही कहने लगे। वैसे अभिनय के इस “लीडर” ने “राम और श्याम” तथा “गोपी” जैसी फिल्मों में अपनी हास्य प्रतिभा का भी परिचय दिया। उस दौर में दिलीप कुमार के साथ-साथ राजकपूर और देव आनंद भी अपने-अपने “संघर्ष” के बूते फिल्म जगत में स्थापित हुए और इस त्रिमूर्ति ने बॉलीवुड में लंबे समय तक राज किया।
उम्र में काफी छोटी सायरा बानो और दिलीप कुमार का “अनोखा प्यार” परवान चढ़ा और दोनों एक-दूजे के हो गए।
अभिनय के संस्थान बन चुके दिलीप कुमार ने पूरी “आन” के साथ अपनी समकालीन ही नहीं, वरन आने वाले दो-तीन पीढ़ियों के अभिनेताओं को भी प्रभावित किया। “शक्ति” में उनके साथ काम कर चुके बिग बी अमिताभ बच्चन हों या बालीवुड के बादशाह शाहरूख खान अभिनय के इस “मुगल-ए-आजम” को अपना आदर्श मानते हैं। फिल्मों के माध्यम से इस “इज्जतदार” अभिनेता को भारत सरकार ने पूरा सम्मान देते हुए पद्‍मभूषण् और दादा साहब फाल्‍के अवॉर्ड प्रदान करने के साथ-साथ राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया। हिन्दी सिनेमा के “जुगनू” भारत के समान ही पाकिस्तान में भी समान रूप से लोकप्रिय थे। इस कारण वहां के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से नवाजे गए। कई सुपर स्टारों और मेगा स्टारों की बालीवुड में “दास्तान” कुछ ही वर्षों में खत्म हो गई, लेकिन दिलीप कुमार के अभियन की “मशाल” सदा जलती रहेगी। उनकी प्रतिभा का एक उदाहरण उन्हें आठ बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिलना भी है, यह आज भी यह कीर्तिमान है। “आदमी” “मुसाफिर” है और “विधाता” को जब मंजूर होता है जिन्दगी का “मेला” खत्म हो जाता है। सात जुलाई 2021 को यूसुफ साहब भी इस फानी “दुनिया” को छोड़कर चले गए। उन्होंने छह दशक के फिल्मी सफर में साठ के आसपास फिल्मों में काम किया, लेकिन अपनी अदाकारी के कारण वह सदा “अमर” रहेंगे। यूसुफ साहब को सादर नमन !

साभारः पी.के. वशिष्ठ

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