मुम्बई। ‘बधाई हो’ ऐक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा ने बताया कि फिल्मों में ऐक्टिंग का सफर उनके लिए इतना आसान नहीं था। उन्होंने अपने उस सफर के बारे में बताया कि कैसे वह एक डांस टीचर और योग टीचर से ऐक्टिंग की दहलीज तक पहुंचीं। डांसिंग हमेशा से मेरा जुनून था, लेकिन कॉलेज जाने से पहले तक मुझे अपने घर में आईने के सामने बॉलिवुड चार्टबस्टर पर या फिर कभी-कभार पार्टियों में ही डांस करने का मौका मिल पाता। दिल्ली यूनिवर्सिटी आने के बाद मैंने कोरियॉग्रफी सोसायटी को जॉइन किया और नए तरह के डांस और टेक्नीक सीखे। थर्ड इयर में पहुंचने के बाद मुझे एक बैले कंपनी में इंस्ट्रक्टर का काम मिला और मैं छोटी बच्चियों को डांस सिखाने लगी। मैं डांस के साथ-साथ ऐक्टिंग भी करना चाहती थी, लेकिन मुंबई आना और अपने सपनों को अंजाम देना तब काफी मुश्किल था, इसलिए मैंने तय किया कि तब तक में डांस में ही आगे काम करूंगी और ग्रैजुएशन के बाद मैंने दिल्ली के एक स्कूल में बतौर डांस टीचर जॉइन किया। सच कहूं तो मैं शुरुआत में इसे लेकर कुछ ज्यादा उत्साहित नहीं थी, लेकिन जब मैंने क्लास लेना शुरू किया तो इसे इंजॉय करने लगी। वहां मेरे साथ सबका व्यवहार काफी अच्छा था और सब काफी स्नेह करते। अच्छी बात यह थी कि मैं दोपहर तक फ्री हो जाती थी और मेरे पास शाम का अपना वक्त होता था। मुझे तब 15000 रुपए मिलते थे और मैंने अपनी पहली सैलरी अपने माता-पिता को दे दी थी।
शुरुआत के कुछ दिन पहले तो केवल लड़कियां आया करती थीं क्लास में और लड़के म्यूज़िक क्लास में जाते, लेकिन लगभग एक वीक के बाद सबके सब डांस के लिए आने लगे। म्यूज़िक टीचर से इस बात को लेकर शिकायत भी की थी, लेकिन तब मुझे काफी अच्छा फील हुआ था। मेरे पहले टीचर्स डे पर मुझे काफी सारे गिफ्ट्स मिले और मैं टीचर ऑफ द इयर घोषित की गई। करीब 4 महीने तक मैं बैले क्लास और उस स्कूल के बीच जूझती रही और इसके बाद मुझे रिऐलिटी शो डांस इंडिया डांस से ऑडिशन के लिए कॉल आया। मैं इसे किसी भी हाल में करना चाहती थी, क्योंकि मुझे यकीन था कि मेरे लिए यह ऐक्टिंग तक पहुंचने का रास्ता खोल सकता है। इस बात से प्रिंसिपल काफी अपसेट भी थे लेकिन मैं अपना मन बना चुकी थी। मैं टॉप 100 पार्टिसिपेंट्स में पहुंच तो गई, लेकिन आगे बात नहीं बन पाई। चूंकि तब मैं मुंबई में ही थी तो मैं मैंने सोचा कि मैं वहां एक आर्ट डायरेक्टर फ्रेंड के साथ 10-15 दिन और रुक जाऊं और कुछ अन्य ऑडिशन दूं। उस वक्त मैं किसी भी चीज पर अपना मन केन्द्रित नहीं कर पा रही थी। मैं जुहू के पृथ्वी कैफे और वहां की कुछ जगहों पर भटका करती, लेकिन इस दौरान मुझे उस शहर से प्यार हो गया। मैं वापस दिल्ली लौटी और मैंने अपने पापा से अपनी ऐक्टिंग के सपने को लेकर बात की। इसके बाद मैं वापस मुंबई लौट गई और लगा कि जैसे मुझे तुरंत कोई बड़ा ब्रेक मिल जाएगा। हालांकि, ऐसा कुछ हुआ नहीं, लेकिन 3-4 महीने के भीतर मुझे पता लग गया कि कहां ऑडिशंस हो रहे हैं और कौन को-ऑर्डिनेटर, कास्टिंग



