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गोलगप्पे बेचकर किया क्रिकेट खेलने का सपना पूरा: यशस्वी जायसवाल

नई दिल्ली हाल ही में भारत की अंडर-19 क्रिकेट टीम ने श्री लंका टीम को 144 रन से हराकर रेकॉर्ड छठी बार एशिया कप अपने नाम कर लिया। इस सीरीज के दौरान कई खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और उनमें से ही एक हैं यशस्वी जायसवाल। टीम के ओपनर यशस्वी ने फाइनल मैच में 85 रनों की पारी खेली थी। साथ ही उन्होंने तीन मैचों में 214 रन बनाए जो टूर्नमेंट में किसी बल्लेबाज के सर्वाधिक रन हैं। यशस्वी के खेल की जितनी तारीफ हो रही है उतनी ही तारीफ उनके संघर्ष की हो रही है। अंडर-19 टीम तक पहुंचने के लिए यशस्वी ने कई मुश्किलों का सामना किया है। यह उनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष का ही नतीजा है कि आज सब उनके खेल की तारीफ कर रहे हैं। वेबसाइट इएसपीएन क्रिकइन्फो ने एक विडियो के जरिए यशस्वी के संघर्षों को दिखाने की कोशिश की है।

कोच ज्वाला सिंह ने यशस्वी जायसवाल को तब खेलते देखा था जब वह सिर्फ 11 या 12 साल के थे लेकिन उस वक्त यशस्वी बहुत सारी मुश्किलों से जूझ रहे थे। वह अच्छा खेलते थे लेकिन उनके पास कोई कोच नहीं था और मां-बाप भी साथ नहीं रहते थे। ज्वाला बताते हैं कि यशस्वी को बड़े रन बनाने की आदत है। साथ ही उन्होंने बताया कि इस युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ी के अंदर क्रिकेट की एक दीवानगी है। यशस्वी सिर्फ 11 साल के थे जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले भदोही से मुंबई तक का सफर किया था और उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी। अपने जीवन के बारे में बात करते हुए यशस्वी ने बताया, ‘मैं सिर्फ यही सोचकर आया था कि मुझे बस क्रिकेट खेलना है और वह भी सिर्फ और सिर्फ मुंबई से।’ साथ ही यशस्वी बताते हैं कि जब आप एक टेंट में रहते हैं तो आपके पास बिजली, पानी, बाथरूम जैसी सुविधाएं भी नहीं होती।

मुश्किल वक्त में यशस्वी ने अपना खर्च चलाने के लिए मुंबई के आजाद मैदान पर गोलगप्पे भी बेचे थे। इस बारे में वह बताते हैं कि मुझे गोलगप्पे बेचना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि जिन लड़कों के साथ मैं क्रिकेट खेलता था, जो सुबह मेरी तारीफ करते थे, वही शाम को मेरे पास गोलगप्पे खाने आते थे। साथ ही उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा करने पर बहुत बुरा लगता था लेकिन उन्हें यह करना पड़ा क्योंकि उन्हें जरूरत थी। यशस्वी बताते हैं कि उनके कोच और भारत के पूर्व महान बल्लेबाज सचिन तेंडुलकर ने उन्हें कहा है कि यह सिर्फ एक शुरुआत है और उन्हें अभी और खेलना है। यशस्वी के अंदर महज पांच साल की उम्र से क्रिकेट का जुनून सवार था। यशस्वी की प्रतिभा के कायल क्रिकेट के भगवान सचिन तेंडुलकर भी हैं। एक बार सचिन ने यशस्वी को अपने घर भी बुलाया था और खेल के गुर सिखाने के बाद खुद के हस्ताक्षर वाला बैट सौंपा था। भारत के पूर्व क्रिकेटर दिलीप वेंगसरकर यशस्वी को अंडर-14 क्रिकेट में खिलाने के लिए इंग्लैंड लेकर गए। जहां यशस्वी ने दोहरा शतक जड़ा और 10 हजार पाउंड का इनाम जीता। मोंटी को जब समय मिलता तो वह आजाद मैदान पर गोलगप्पे बेचने में अपने अंकल की मदद करता और मैदान में होने वाले क्रिकेट की वह स्कोरिंग भी करता।

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