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सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट पर भारत की दावेदारी

नई दिल्ली,27 सितंबर। वैसे तो मोदी के दौरे में क्वॉड से लेकर समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद से लेकर अफगानिस्तान जैसे कई मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन इस दौरे से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट पर भारत की दावेदारी को लेकर बाइडेन प्रशासन का रुख भी स्पष्ट हो गया। भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने बताया कि बाइडेन ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत की है। उन्होंने कहा कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि सभी क्वॉड मेंबर देश इस बात पर सहमत हैं। इसके अलावा कई और देश हैं, जो भारत को सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य के तौर पर देखना चाहते हैं। श्रृंगला ने कहा कि भारत को स्थायी सदस्यता मिलने पर सुरक्षा परिषद में नए मुद्दों पर चर्चा होगी। जैसे सुरक्षा परिषद की पिछली बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समुद्री सुरक्षा का मसला उठाया था। पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने सुरक्षा परिषद में संबोधन दिया था और बैठक में समुद्री सुरक्षा पर सफल डिबेट कराई। विदेश सचिव ने कहा कि जब अफगानिस्तान की बात आती सामने आती है, तो हमारा एक राय होना जरूरी हो जाता है। क्वॉड बैठक अफगानिस्तान के मसले पर नेताओं को एकजुट रखने में उपयोगी रही। श्रिंगला ने कहा कि प्रधानमंत्री का यह दौरा व्यापक और उपयोगी रहा। भारत 1950-1951, 1967-1968, 1972-1973, 1977-1978, 1984-1985, 1991-1992 और 2011-2012 के दौरान 7 बार सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रह चुका है। भारत का आठवां कार्यकाल 1 जनवरी 2021 को शुरू हुआ है, जो 31 दिसम्बर 2023 तक चलेगा।
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य देश होते हैं। अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन 5 स्थायी देशों में शामिल हैं, जबकि 10 अस्थायी देश हर 2 साल में बदलते रहते हैं। 193 देश वोटिंग के जरिए इन 10 देशों का चुनाव करते हैं। इस वक्त गैबॉन, घाना, संयुक्त अरब अमीरात, अल्बानिया, ब्राजील, भारत, आयरलैण्ड, केन्या, मेक्सिको और नॉर्वे सुरक्षा परिषद के अस्थायी देश हैं। इसमें अल्बानिया एकमात्र ऐसा सदस्य देश है, जो पहले कभी भी सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं रहा है।सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य चुने जाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। चुनाव गुप्त मतदान के जरिए होता है। इसमें 5 सीटें अफ्रीका और एशिया-प्रशान्त के देशों के लिए, एक पूर्वी यूरोप के देश के लिए और 2-2 लैटिन अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों के लिए आरक्षित रहती हैं।

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