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सिर्फ आदमी ही नहीं, बल्कि औरतें भी थी जंग के मैदान में

काबुल,20 सितंबर। करीब 20 दिन पहले, जब अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत काबिज हो गई थी, तब भी एक ऐसा प्रांत था जो तालिबान को चुनौती दे रहा था। ये था पंजशीर। यहां पर पूर्व उप-राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद की रजिस्टेंस फौज तालिबान से जंग लड़ रही थी।अपने प्रांत और देश को तालिबान से आजाद रखने का जज्बा ऐसा था कि सिर्फ आदमी ही नहीं, बल्कि औरतें भी जंग के मैदान में थीं। एक इंटरव्यू में 24 साल की लैलुमा ने बताया कि मेरा पूरा परिवार- पति, भाई, सास-ससुर- तालिबान से लड़ रहा था। उन्होंने खुद तालिबान पर पत्थरों से हमला किया। लैलुमा ने यह भी कहा कि उनके साथ और भी महिलाओं ने तालिबान से मोर्चा लिया। अब लैलुमा काबुल के एक शरणार्थी कैंप में रह रही हैं। इसके बाद भी लैलुमा ने खुद से वादा किया है कि वो आखिरी सांस तक मसूद को ही अपना नेता मानेंगी और उन्हें फॉलो करेंगी। उन्हें उम्मीद है कि किसी दिन वे लौटकर अपने घर वापस जा सकेंगी। पंजशीर की जंग अभी खत्म नहीं हुई है। पंजशीर के एक और नागरिक मुर्तजा ने बताया कि वे लंबे समय तक पंजशीर की पहाड़ियों में छिपे रहे।आखिरकार उन्हें तालिबान ने ढूंढ निकाला और काबुल के कैंप में लाकर रख दिया। 115 किमी के विस्तार वाली पंजशीर घाटी चारों तरफ से पहाड़ों से घिरी है। इसके चलते रेजिस्टेंस फोर्स को प्राकृतिक फायदा मिला हुआ था। लेकिन इस बार पंजशीर की यह खासियत भी तालिबान से उसे नहीं बचा सकी। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद महिलाओं की स्थिति बेहद खराब हो गई है। आलम यह है कि जो महिलाएं जिंदगी भर सेल्फ डिफेंस सीखती रहीं, या फिर जो दूसरों की रक्षा में लगी थीं, वो तालिबान के आगे बेबस साबित हुईं। अगस्त में तालिबान के लड़ाकों ने घर में घुसकर एक पूर्व महिला पुलिस अफसर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। घटना के वक्त इस पुलिस अफसर का परिवार भी मौजूद था। वहीं अफगानिस्तान की महिला बॉक्सर सीमा रेजाई को अपना पैशन फॉलो करने के लिए देश छोड़ना पड़ा। वे अफगानिस्तान में लाइटवेट बॉक्सिंग चैंपियन रह चुकी हैं। तालिबान ने उन्हें अफगानिस्तान छोड़ने या मरने के लिए तैयार रहने की धमकी दी थी।

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