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म्यांमार की सेना ने किया है नरसंहार

न्यूयार्क संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का कहना है कि म्यांमार के रखाइन प्रांत और बाक़ी इलाक़ों में हुए जनसंहार और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के मामले में देश के बड़े सैन्य अधिकारियों की भूमिका की जांच होनी चाहिए। यह रिपोर्ट सैकड़ों साक्षात्कारों पर आधारित है और इसे म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान के साथ हुई हिंसा के लिए संयुक्त राष्ट्र की सबसे कड़ी निंदा के तौर पर देखा जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सुरक्षा के वास्तविक ख़तरों को देखते हुए कहा जा सकता है कि सेना ने लगातार भेदभाव वाली रणनीतियां अपनाईं। रिपोर्ट में म्यांमार सेना के छह बड़े अधिकारियों का नाम देकर कहा गया है कि उन पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में म्यांमार की मौजूदा नेता आंग सान सू ची की भी कड़ी आलोचना की गई है कहा गया है कि वो देश में जारी हिंसा को रोकने में नाक़ाम रहीं। इतना ही नहीं, इसमें मामले को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) भेजने की सलाह भी दी गई है। हालांकि म्यांमार सरकार शुरू से ही यह कहकर अपना बचाव करती आई है कि सेना की कार्रवाई का निशाना अवैध घुसपैठिये और चरमपंथी थे, आम नागरिक नहीं। लेकिन रिपोर्ट का कहना है कि इसमें जिन अपराधों को शामिल किया गया है वो इतने चौंकने वाले हैं कि उन पर भरोसा करना मुश्किल है और उनके लिए सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए।

रिपोर्ट की एक लाइन है- सेना कभी लोगों की बेतहाशा हत्या, औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार, बच्चों के उत्पीड़न और पूरे के पूरे गांवों को जलाने को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकती। नरसंहार वो सबसे गंभीर आरोप है जो किसी सरकार के पर लगाया जा सकता है। ऐसा बहुत कम होता है जब संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ता किसी सरकार के ख़िलाफ़ नरसंहार के आरोप तय करने की बात कहे। चूंकि इस रिपोर्ट में म्यांमार की सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ जांच शुरू करने की बात कही गई, इसलिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सदस्यों को इसे नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन होगा। हालांकि रिपोर्ट में जैसा कहा गया है, म्यांमार को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ले जाना मुश्किल होगा क्योंकि म्यांमार उस रोम संधि का हिस्सा नहीं है जिसके तहत ये मामला इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में पहुंच सकता है इसलिए मुक़दमा चलाने के लिए सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों का साथ चाहिए होगा और चीन शायद इसका समर्थन न करे। रिपोर्ट में मामले की जांच करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से एक स्वंतत्र निकाय बनाने की सलाह दी है जैसा कि सीरिया मामले में हुआ है। म्यांमार की सरकार अब तक रोहिंग्या मुसलमानों के साथ होने वाली हिंसा से सम्बन्धित रिपोर्टों को ख़ारिज करती आई है लेकिन इस रिपोर्ट को ख़ारिज करना सरकार के लिए कहीं ज़्यादा मुश्किल होने वाला है।

संयुक्त राष्ट्र का ‘इंडिपेंडेंट इंटरनेशनल फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग मिशन ऑन म्यांमार’ साल 2017 में बनाया गया था। इसका मक़सद, पूरे म्यांमार में ख़ासकर रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हुई हिंसा के मामलों की जांच करना था। म्यांमार में हिंसा की शुरुआत अगस्त 2017 से हुई जब रोहिंग्या चरमपंथियों ने वहां हमला किया। इसके बाद म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी। हिंसा की वजह से कम से कम 700,000 रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा है।

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