नई दिल्ली। तीन तलाक विधेयक को कानून बनाने के लिए सरकार ने अध्यादेश का रास्ता चुना है। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को तीन तलाक पर अध्यादेश को मंजूरी दे दी। बता दें कि तीन तलाक विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है लेकिन राज्यसभा में लंबित है। सरकार के इस कदम को मुस्लिम महिलाओं के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस सहित विपक्ष के कुछ दल इस विधेयक के कुछ प्रावधानों में बदलाव की मांग करते रहे हैं। कांग्रेस ने लोकसभा में इस विधेयक का समर्थन किया था लेकिन राज्यसभा में उसने अपने रुख में बदलाव कर लिया। तीन तलाक पर अध्यादेश लाकर सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने की कोशिश तो की है लेकिन सरकार की यह कोशिश तब तक रंग नहीं लाएगी जब तक कि यह विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो जाता। सरकार के इस अध्यादेश से मुस्लिम महिलाओं को छह महीने की फौरी राहत मिली है। यह अध्यादेश छह महीने तक प्रभावी रहेगा। तीन तलाक पर अध्यादेश को कानून बनाने के लिए सरकार को आगामी शीतकालीन सत्र में इसे पारित कराना होगा। संसद के मानसून सत्र में सरकार ने राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक को पारित कराने की कोशिश की लेकिन विपक्ष के हंगामे के चलते यह विधेयक पारित नहीं हो सका। विपक्ष तीन तलाक मामले में तुरंत गिरफ्तारी से जुड़े विधेयक के प्रावधान में संशोधन चाहता है। विपक्ष का कहना है कि व्यक्ति के तुरंत गिरफ्तार हो जाने के बाद वह अपने परिवार की देखभाल नहीं कर सकता। तीन तलाक पर अध्यादेश आने के बाद मुस्लिमों महिलाओं ने खुशी का इजहार किया है। वहीं, सरकार के इस फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गई हैं। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार तीन तलाक को मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय का मुद्दा नहीं बना रही बल्कि वह इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहती है।
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