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एयरलाइंस मार्केट में गला काट प्रतिस्पर्धा, सस्ता किराया, ईंधन की कीमत बने वजह

नई दिल्ली देश में आए ट्रैवल बूम के बाद दुनियाभर की एयरलाइंस भारत में अपने पैर जमाने को आतुर हैं। इससे भारत की एयरलाइंस की हालत दिन प्रतिदिन पतली होती जा रही है, वहीं विदेशी एयरलाइंस भी बड़े फायदे में नहीं दिखतीं। बढ़ती फेयर वॉर, ईंधन की ऊंची कीमत उनके लिए रोज नई परेशानी खड़ी कर रही है। बढ़ते कॉम्पिटिशन की वजह से भारतीय कंपनियों की स्थिति ऐसी हो गई है कि उन्हें ना चाहते हुए टिकट की कीमतों को कम करना पड़ता है। सबसे बड़ा उदाहरण जहां जेट एयरवेज का है। 1990 में मार्केट खुलने के बाद सबसे पहले यही एयरलाइंस अस्तित्व में आई थी, लेकिन आज उसकी हालत पतली है। कंपनी के पास कैश की किल्कत है, जिसकी वजह से उसके स्टॉक प्राइस लगातार गिर रहे हैं। हालात इतने बिगड़ गए थे कि कंपनी ने अपने कर्मचारियों की सैलरी को 25 प्रतिशत तक घटाने की बात कह डाली थी।

एयरलाइंस मार्केट में आए आर्थिक संकट की मुख्य वजह फेयर वॉर को माना जा रहा है। इसमें बड़ा रोल मलयेशिया की बजट एयरलाइंस एयर एशिया और सिंगापुर एयरलाइंस का है। आने वाले दिनों में कतर एयरलाइंस भी भारत आ सकती है, जिससे स्थिति और विकट होगी। भारतीय एयरलाइंस को घाटे में डालने में दूसरा अहम रोल जेट के फ्यूल प्राइस का है। लोकल टैक्स जो कि 30 प्रतिशत तक लिया जाता है उससे तेल की कीमत आसमान छू जाती है। भारत में जेट फ्यूल की कीमत सबसे ज्यादा है। माना जाता है कि भारतीय उड्डयन उद्योग के घरेलू प्लेयर्स के लिए 1994 के बाद से बुरा वक्त शुरू हो गया था। उस साल सरकार ने इस फील्ड में विदेशी एयरलाइंस के लिए रास्ते खोलते हुए इंडियन एयरलाइंस का एकाधिकार खत्म कर दिया था। फिर सबसे पहले 2012 में किंगफिशर घाटे का हवाला देकर बंद हो गई, उसके बाद से बाकी बची 10 भारतीय कंपनियों का हाल भी खराब होने लगा। 2015 में एक वक्त ऐसा आया था जब स्पाइसजेट ने अपना बेस फेयर इतना कम कर दिया था कि नई दिल्ली से मुंबई तक की टिकट पर उसका एवरेज 1 रुपये (प्रति टिकट) हो गया था। वहीं पिछले साल इसी रूट पर एयर टिकट प्राइस 15 प्रतिशत गिरकर 3,334 रुपये पर आ गए थे। वहीं उस वक्त उस रूट पर प्रीमियर रेल टिकट का किराया 4,075 रुपये था। एक अधिकारी ने बताया कि 2014 के मुकाबले इस वक्त फेयर प्राइस 40 प्रतिशत तक कम हो गए हैं। वहीं दूसरे अधिकारी ने तो यह तक कह दिया कि भारत में एयरलाइंस चलाने का खर्च टिकट से आनेवाले पैसे से पूरा नहीं किया जा सकता।

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