इंदौर। वैश्विक बाजार में मूल्य प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने के कारण भारतीय सोया खली की मांग में गिरावट का दौर तेल विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर 2017-सितंबर 2018) में भी जारी रहा। इस अवधि में देश से सोया खली का निर्यात करीब 15 प्रतिशत की कमी के साथ 17 लाख टन पर सिमट गया। तेल विपणन वर्ष 2016-17 (अक्टूबर 2016-सितंबर 2017) में सोया खली का निर्यात लगभग 20 लाख टन के स्तर पर रहा था। इंदौर स्थित सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने बुधवार को ये आंकड़े जारी किये। सोपा के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक ने “पीटीआई-भाषा” को बताया, “आलोच्य अवधि के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय सोया खली के भाव अमेरिका, ब्राजील और अर्जेन्टीना के इस उत्पाद के मुकाबले ऊंचे बने रहे। इससे भारतीय सोया खली की मांग पर जाहिर तौर पर विपरीत असर पड़ा।” उन्होंने बताया कि तेल विपणन वर्ष 2012-13 में देश से सोया खली का निर्यात 40 लाख टन से ज्यादा था। इसके बाद से खासकर ऊंचे भावों के कारण भारतीय सोया खली की वैश्विक मांग गिरती जा रही है। सोया खली वह उत्पाद है, जो प्रसंस्करण इकाइयों में सोयाबीन का तेल निकाल लेने के बाद बचा रह जाता है। यह उत्पाद प्रोटीन का बड़ा स्त्रोत है। इससे सोया आटा और सोया बड़ी जैसे खाद्य उत्पादों के साथ पशु आहार तथा मुर्गियों का दाना भी तैयार किया जाता है। बहरहाल, भारत से सोया खली का निर्यात घटने का एक कारण देश में सोयाबीन की पैदावार में कमी भी है।सोपा के आंकड़े बताते हैं कि तेल विपणन वर्ष 2017-18 में भारत में सोयाबीन की पैदावार 24 प्रतिशत घटकर 83.50 लाख टन रह गयी। तेल विपणन वर्ष 2016-17 में देश में 109.92 लाख टन सोयाबीन उपजा था।
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