ऐसा नहीं है कि सत्तारूढ़ दल ने देश के मध्यकालीन इतिहास को वर्तमान बनाने का अभियान शुरू करके उसे ऑटो पायलट मोड में डाल दिया तो उसे रास्ते पर लाने के लिए विपक्ष कुछ कर रहा है। विपक्ष कुछ नहीं कर रहा है। उसकी राजनीति भी एक ढर्रे पर और एक चाल से चल रही है। बीच बीच में क्षेपक की तरह कोई विपक्षी पार्टी कुछ करती है, जैसे अभी कांग्रेस पार्टी का चिंतन शिविर हुआ। उसके बाद फिर सब अपने खोल में दुबक जाते हैं। सोचें, कांग्रेस के इतने बड़े चिंतन शिविर से क्या निकला? इस शिविर का नाम नव संकल्प शिविर रखा गया था लेकिन क्या कांग्रेस ने कोई नया संकल्प किया? क्या उसने इस बात पर विचार किया कि ऐतिहासिक भूल सुधार का जो स्वचालित अभियान इस देश में चल रहा है उसे कैसे रोका जा सकता है? असल में कांग्रेस ने किसी जरूरी मसले पर विचार ही नहीं किया।
तभी कांग्रेस में सब कुछ उसी ढर्रे पर चल रहा है, जिस पर पहले चल रहा था। कांग्रेस का नव संकल्प शिविर खत्म हुआ और एक हफ्ता पूरा होने से पहले दो बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ ने यह कहते हुए पार्टी छोड़ी कि कांग्रेस पंजाब का बंटवारा करना चाह रही है। ५० साल तक उनका परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा और एक झटके में वे भाजपा में चले, जिसका 50 साल तक उन्होंने और उनके पिता ने विरोध किया था। यह हिंदू राजनीति की अनिवार्य परिणति है। हिंदू होने की वजह से कांग्रेस ने उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया था। इसलिए वे अपनी हिंदू पहचान लेकर भाजपा में चले गए। यह कोई मामूली बात नहीं है। इसका मैसेज है कि हिंदू पहचान वाले नेताओं की जगह भाजपा में ही है। सिख बहुल राज्य के एक बड़े हिंदू नेता के कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में जाने का मैसेज दूसरे कई राज्यों में जाएगा। कांग्रेस को इसकी रत्ती भर परवाह नहीं है।
कांग्रेस के नव संकल्प शिविर के एक हफ्ता पूरा होने से पहले गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल पार्टी छोड़ कर चले गए। उन्होंने पार्टी छोड़ते हुए आरोप लगाया कि जब भी वे गुजरात के बारे में बात करने पार्टी के शीर्ष नेता के पास गए तो वे अपने मोबाइल में बिजी रहते थे। उन्होंने बिना नाम लिए राहुल गांधी का जिक्र किया और कहा कि बड़े मौकों पर वे विदेश में रहते हैं। उनकी कही यह बात जिस दिन अखबारों में छपी उसी दिन राहुल गांधी लंदन चले गए। उनको कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में भाषण देना है पर उस भाषण से चार दिन पहले ही वे लंदन पहुंच गए। तभी क्या ऐसा नहीं लग रहा है कि कांग्रेस में भी सब कुछ ऑटो पायलट मोड में चल रहा है। पार्टी लगातार चुनाव हार रही है, नेता पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं और शीर्ष नेता विदेश दौरा कर रहे हैं।
विपक्ष की प्रादेशिक पार्टियों के पास कांग्रेस जैसी लग्जरी नहीं है फिर भी उसके नेता कोई खास प्रयास नहीं कर रहे है। उनका काम भी इस लिहाज से ऑटो पायलट मोड में है कि चुनाव खत्म होते ही वे राजनीति से विमुख हो जाते हैं। चुनाव के बाद उनका पांच साल का समय सोशल मीडिया में कटता है। वहीं पर एक ट्विट इस मसले पर किया और दूसरे मसले पर दूसरा ट्विट किया फिर मज़े से घर में बैठे हैं। समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक आजम ख़ान २७ महीने के बाद जेल से रिहा हुए तो पार्टी सुप्रीमो ने ‘स्वागत है’ का एक ट्विट कर दिया, जबकि शिवपाल यादव उनको रिसीव करने जेल गेट पर पहुंच गए। शिवपाल यादव राजनीति कर रहे हैं और उनके पीछे कौन सी राजनीतिक ताकत है यह भी सबको पता है लेकिन सवा सौ सीट वाली विपक्षी पार्टी राजनीति को ऑटो पायलट मोड में डाल कर बैठी है।