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राफेलः सरकार और कांग्रेस के दावों से अलग है CAG की रिपोर्ट

नई दिल्ली। राफेल डील को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। काफी समय से नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट का इंतजार था, जो बुधवार को संसद में पेश की गई। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि UPA की तुलना में ज्यादा पैसे देकर राफेल डील की गई। हालांकि NDA सरकार ने कहा है कि 36 लड़ाकू विमानों की यह डील कम से कम 9 फीसदी सस्ती है। हालांकि CAG की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 2.86% ही सस्ता था। आइए जानते हैं कि राफेल सौदे पर सरकार और कांग्रेस क्या कह रही थी, वहीं CAG की रिपोर्ट में क्या सामने आया है? 2007 में यूपीए ने 126 नए एयरक्राफ्ट का सौदा किया था जिनमें से 18 उड़ने की स्थिति में मिलने थे और बाकी 108 विमान HAL के सहयोग से बनाए जाने थे। हालांकि एनडीए सरकार ने 36 राफेल विमानों का सौदा किया, जो फ्रांस की कंपनी दसॉ से ही मिलने हैं। विपक्ष इस बात को लेकर आक्रामक होता रहा है कि सरकार एक तरफ मेक इन इंडिया की बात करती है वहीं, दूसरी तरफ सभी विमानों की खरीद विदेशी कंपनी से कर रही है।
यूपीए के 18 विमानों के मूल्य को दोगुना करके एनडीए के 36 विमानों के साथ तुलना की गई। अनुबंध में 14 उपकरणों के लिए छह पैकेज थे। कैग की रिपोर्ट में एनडीए और यूपीए सरकार के सौदे की इन छह स्तरों पर तुलना की गई। फ्लाइवे एयरक्राफ्ट पैकेज में दोनों की कीमतों में कोई अंतर नहीं था। सर्विस प्रॉडक्ट के मामले में NDA सरकार का सौदा 4.77 फीसदी सस्ता था। विमान में भारतीय उपकरण लगाने का खर्च एनडीए सरकार के सौदे में 17.08 प्रतिशत कम है। हालांकि इंजिनियरिंग सपॉर्ट पैकेज (6.64%), लॉजिस्टिक्स (6.54%), और ग्राउंड एक्विपमेंट (0.15%) यूपीए सरकार में सस्ता था। कुल मिलाकर अगर तुलना करते हैं तो NDA का सौदा UPA के मुकाबले 2.86% सस्ता था। 2007 में यूपीए सरकार के अनुबंध के मुताबिक तैयार किए गए विमान 37 महीने और 50 महीने में भारत को मिलने थे जबकि 2016 के एनडीए के सौदे के मुताबिक 18 विमानों की पहली खेप 36 से 53 महीने में और 67 महीने में बाकी के 18 विमान दिए जाने हैं। यूपीए सरकार के डिलिवरी शेड्यूल के मुकाबले यह 5 महीने कम है। हालांकि भारतीय उपकरण वाले विमान मिलने में यूपीए सरकार के मुकाबले केवल एक महीने का अंतर है।
2007 में दसॉ ने परफ़ॉर्मेंस और फाइनैंशल गारंटी दी थी जो अनुबंध की 25 प्रतिशत थी। हालांकि 2016 के सौदे में ऐसी कोई गांरटी नहीं दी गई। इस मामले में दसॉ को फायदा हुआ है। ऑफसेट के मामले में कैग एक दूसरी रिपोर्ट पेश करेगा जिसमें पिछले पांच साल में सेना के लिए किए गए सारे ऑफसेट सौदे शामिल होंगे। इसका प्रारूप रक्षा मंत्रालय को टिप्पणी के लिए दे दिया गया है लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले इसे पेश करना मुश्किल है। एनडीए सरकार का दावा है कि इस डील में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को समर्थन देने के लिए ऑफसेट प्राप्त करना शामिल है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कैग की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा है कि रिपोर्ट में बहुत सारी बातों की अनदेखी की गई है और सरकार का दबाव रहा है। थोड़ी देर में ही सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और रविशंकर प्रसाद ने इसे ‘महाझूठ’ बताया और कांग्रेस अध्यक्ष की नीयत पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि राहुल विदेशी कंपनियों के साथ लॉबीइंग कर रहे हैं।

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