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महंगाई पर बेसुधी, जीएसटी पर जश्न ! -हरिशंकर व्यास

भारत में हर महीने की पहली तारीख को इसका जश्न मनाया जाता है कि पिछले महीने वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी की वसूली में इतनी बढ़ोतरी हो गई। जुलाई के महीने की पहली तारीख को सरकार ने आंकड़ा जारी किया, जिसके बाद सुर्खियां बनीं कि लगातार तीसरे महीने जीएसटी की वसूली एक लाख ४० हजार करोड़ रुपए से ज्यादा रही। अप्रैल के महीने में तो जीएसटी की वसूली एक लाख ६० हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई थी। जीएसटी राजस्व में हर महीने हो रही बढ़ोतरी के जश्न में किसी को यह पूछना नहीं सूझता है कि आखिर यह पैसा कैसे और कहां से आ रहा है या कौन चुका रहा है? ध्यान रहे जीएसटी वह टैक्स है, जो १४० करोड़ लोगों को भरना होता है। जन्म से लेकर मरने तक शायद ही कोई वस्तु है या शायद ही कोई सेवा बची हुई है, जिस पर सरकार टैक्स नहीं ले रही है।
हर महीने जीएसटी की वसूली इसलिए नहीं बढ़ रही है कि देश में उपभोग बढ़ रहा है या लोग अमीर हो गए हैं और बहुत खर्च कर रहे हैं। इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि सरकार एक के बाद एक वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स लगाती जा रही है। इसके अलावा कंपनियां कीमत बढ़ा रही हैं, उसकी वजह से भी टैक्स की वसूली बढ़ रही है। टैक्स के दायरे में ज्यादा वस्तुओं को ले आने और महंगाई बढऩे की वजह से जीएसटी की वसूली बढ़ रही है। इस दोहरी मार के अलावा आम नागरिकों पर एक और मार पड़ रही है। वह ‘स्रिंकफ्लेशन’ की वजह से है। कंपनियों वस्तुओं की कीमत तो बढ़ा ही रही हैं साथ ही उपभोक्ताओं की आंखों में धूल झोंकने के लिए डिब्बाबंद वस्तुओं की मात्रा कम कर रही हैं। पहले सौ ग्राम का जो पैकेट होता था अब ऐसे ज्यादातर पैकेट ८०-८५ ग्राम के हो गए हैं। आकार वहीं रखते हुए सामान की मात्रा कम कर दी जा रही है। इसका मतलब है कि ज्यादा कीमत देकर कम सामान मिल रहा है।

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