पश्चिम के तथाकथित विकसित समाजों का यह दुर्भाग्य है कि उनके राजनीतिक और बौद्धिक नेतृत्व ने यूक्रेन संकट के सिलसिले में धीरज नहीं दिखाया। नतीजतन, अब उन्हें माफी मांगनी पड़ रही है।
कहा जाता है कि हालात जैसे हों, उसमें धीरज बनाए रखना चाहिए। भावावेश में उठाए गए कदम अक्सर खुद को नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। असल में किसी व्यक्ति या समाज की परख इस बात से भी होती है कि जब चीजें अपने हाथ में ना हों, तब वह कितना संयम बनाए रखता है। पश्चिम के विकसित समाजों का यह दुर्भाग्य है कि उनके राजनीतिक और बौद्धिक नेतृत्व ने इस वर्ष के आरंभ में यूक्रेन संकट के सिलसिले में ऐसा धीरज नहीं दिखाया। जब रूस ने सैनिक कार्रवाई शुरू की, तो रूस विरोधी भावनाओं का वहां ऐसा उबाल आया कि खेल, साहित्य, विज्ञान यानी जीवन के हर क्षेत्र में आम रूसी व्यक्तियों के बहिष्कार का अभियान छेड़ दिया गया।
विद्रूप की बात तो यह है कि ऐसा केवल सरकार अथवा सरकार समर्थित संस्थानों ने ही नहीं बल्कि निजी संस्थाओं तथा कंपनियों ने भी बिना सोचे समझे करना शुरू कर दिया था। अब लगभग ६ माह बीत जाने के बाद स्थितियां धीरे-धीरे बदल रही हैं।
अच्छी बात है कि अब ये ख्याल उन समाजों में कुछ हिस्सों को हो रहा है कि उनसे गलती हुई। इसी बात की यह मिसाल है कि ब्रिटेन के एक रिसर्च संस्थान ने रूस की एक युवा शोधकर्ता से माफी मांगी है। कुछ महीने पहले इसी संस्थान ने उस रिसर्चर को अपने यहां दाखिला देने का ऑफर वापस ले लिया था।
ऑफर वापस लेते हुए संस्थान ने कहा था कि चूंकि वह रूसी है, इसलिए उसे इस संस्थान में दाखिला नहीं मिल सकता। अब संस्थान ने उस वैज्ञानिक से माफी मांगते हुए उन्हें फिर से अपने यहां ज्वाइन करने के लिए आमंत्रित किया है। इसके पहले ऐसी ही एक घटना मई में सामने आई थी। तब यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट लंदन में हॉस्पिलिटी कोर्स के लिए आए एक रूसी महिला के आवेदन को ठुकरा दिया गया था। उस महिला को भेजे गए ई-मेल में यूक्रेन युद्ध शुरू होन के बाद यूनिवर्सिटी में अपनाई गई नई नीति का हवाला दिया गया था। लेकिन बाद में यूनिवर्सिटी ने सफाई दी थी कि ‘आंतरिक गलतफहमी’ के कारण ‘गलती से’ वो ई-मेल चला गया था। अब ऐसा ही मामला ग्लासगो शहर में स्थित जीवन विज्ञान अनुसंधान संस्थान द बीटसन इंट्स्टीट्यूट में सामने आया है। अच्छी बात है कि अब संस्थान ने उस रूसी रिसर्चर को आमंत्रण भेज दिया है, जिसे पहले दिए गए ऑफर को उसके सिर्फ रूसी होने के आधार पर वापस ले लिया गया था।
यह कुछ उदाहरण यह दर्शाते हैं कि पश्चिमी समाज किस प्रकार तात्कालिक मुद्दों को लेकर एकदम से अधीर होकर भावावेश में फैसले लेने लगता है, जो कहीं ना कहीं अपरिपक्वता का प्रमाण हैं।
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