देश की तमाम संवैधानिक और वैधानिक संस्थाओं में अपनी पसंद के और प्रतिबद्ध लोगों की नियुक्ति के बाद ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार की नजर देश की न्यायपालिका पर है। उच्च अदालतों में नियुक्ति और तबादले की मौजूदा प्रक्रिया को सरकार हर हाल में बदलना चाहती है। यह भी लग रहा है कि किरेन रिजीजू को देश का कानून मंत्री इसी काम के लिए बनाया गया है। इससे पहले आमतौर पर किसी अनुभवी और वरिष्ठ वकील को देश का कानून मंत्री बनाया जाता था। रिजीजू ने कानून की पढ़ाई जरूर की लेकिन उन्होंने प्रैक्टिस नहीं की है। इसलिए वे न्यायपालिका और उच्च अदालतों में कामकाज की बहुत सी बारीकियों और घोषित-अघोषित परंपराओं से परिचित नहीं हैं।
तभी कानून मंत्री बनने के बाद से वे लगातार उच्च न्यायपालिका को निशाना बना रहे हैं। एक ही सांस में वे न्यायपालिका के प्रति सम्मान की बात भी करते हैं और उसकी कमियां भी बताते हैं। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि न्यायपालिका में बहुत राजनीति होती है और जजों की बहाली, प्रमोशन और उनके तबादले पर ही ज्यादा ध्यान रहता है। वे लगातार कॉलेजियम सिस्टम की बुराई करते हैं। अब उन्होंने कहा है कि भारत को छोड़ कर दुनिया के किसी भी देश में जजों की नियुक्ति जज नहीं करते हैं।
रिजीजू ने कहा है कि कॉलेजियम सिस्टम बहुत अस्पष्ट और संदिग्ध है। उन्होंने इससे मिलीभगत वाला होने के आरोप भी लगाए। तभी ऐसा लग रहा है कि सरकार फिर से न्यायिक जवाबदेही कानून ला सकती है। पिछली बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। जजों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था को बदलने के लिए यह कानून फिर से लाने की पृष्ठभूमि बनाई जा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह काम नए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल में होता है या नहीं? ध्यान रहे अगले लोकसभा चुनाव के बाद तक चंद्रचूड़ ही चीफ जस्टिस रहने वाले हैं।
