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भारत आकर एंटोनियो गुटेरेस की सीख

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने भारत पहुंचते ही जो टिप्पणी की, उससे यह अंदाजा लगता है कि आज दुनिया की मुख्यधारा भारत को किस नजर से देख रही है। गुटेरेस एक आधिकारिक पद पर हैं। इसलिए वे जो कहते हैं, उसे एक तरह से संयुक्त राष्ट्र का बयान भी समझा जाता है। इसीलिए उनकी बातों को सिरे से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, हालांकि भारतीय मीडिया के ज्यादातर हिस्से में ऐसे ही किया गया है। गौरतलब है कि गुटेरेस की यात्रा की शुरूआत मुंबई से हुई। उन्होंने मुंबई के होटल ताज पैलेस में २६/११ के आतंकवादी हमले के मृतकों को श्रद्धांजलि दी। वहां उन्होंने कहा कि कोई भी कारण आतंकवाद को सही नहीं ठहरा सकता। मुंबई की घटना को उन्होंने इतिहास की सबसे बर्बर आतंकवादी हमलों में एक बताया। इसके बाद वे आईआईटी बॉम्बे के छात्रों को संबोधित करने गए। वहां उन्होंने भारत को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की सीख दी।
कहा- “मानवाधिकार परिषद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत पर वैश्विक मानवाधिकारों को आकार देने और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों समेत सभी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने की जिम्मेदारी है। मानवाधिकारों के सम्मान के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता दिखाकर ही विश्व में भारत अपनी बात को स्वीकार्यता और विश्वसनीयता दिला सकता है।” इस प्रश्न पर देश में आत्म-मंथन होना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव को भारत में आकर यह बुनियादी बात कहने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या इसकी वजह दुनिया में इस आलोचना की बढ़ती विश्वसनीयता नहीं है कि भारत में अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ और उनके खिलाफ हेट स्पीच में तेजी आई है? साथ ही सरकार के आलोचकों के प्रति भी नफरत बढ़ी है? गुटेरेस ने पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, छात्रों और शिक्षाविदों के अधिकारों और उनकी आजादी की रक्षा करने और भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की जरूरत पर भी जोर दिया। वैसे गुटेरेस ने ब्रिटेन से आजादी के ७५ साल बाद भारत की उपलब्धियों की प्रशंसा भी की। मगर इसमें भी यह सूक्ष्म टिप्पणी थी- “बहुलता का भारतीय मॉडल एक सरल लेकिन गहरी समझ पर आधारित है। विविधता एक ऐसी खूबी है जो आपके देश को मजबूत बनाती है।”

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