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धार्मिक गोलबंदी की कवायद, राहुल गांधी ने अजमेर शरीफ में चढ़ाई चादर

अजमेर। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार सुबह राजस्थान में अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में चादर चढ़ाई। इसके बाद उन्होंने पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर जाकर दर्शन किए। यहां रविवार शाम से ही सिक्यॉरिटी के साथ कांग्रेस नेताओं का जमावड़ा होने लगा था। इस दौरान कांग्रेस नेता कह रहे हैं, ‘राहुल के यहां जियारत को आने को राजनीति ले मत जोड़िए, गरीब नवाज का दर तो सबके लिए खुला है। कुछ महीने पहले मुख्तार अब्बास नकवी मोदी जी की तरफ से चादर चढ़ाने के लिए यहां आ चुके हैं।’ लेकिन यह तर्क जितनी मासूमियत से दिया जा रहा है, उतना मासूम है नहीं।
दरअसल, अब जैसे-जैसे राजस्थान का चुनाव आगे बढ़ रहा है, यहां प्रतीकों के सहारे धार्मिक गोलबंदी की कवायद भी तेज हो रही है। बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने अपने-अपने चुनाव अभियान की जो दिशा तय की है, वह इसी तरफ इशारा करते हुए दिख रहे हैं। राहुल गांधी ने अगर अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में जियारत का कार्यक्रम तय किया है, तो वह पुष्कर के मंदिर भी जाएंगे। दरअसल, कांग्रेस अब अपने को सिर्फ मुसलमानों की पार्टी की शक्ल में नहीं दिखाना चाहती। राहुल के कांग्रेस पार्टी का चेहरा बनने के बाद कांग्रेस की रणनीति में बड़ा बदलाव आया है। वहीं, बीजेपी ने मोदी के चुनाव अभियान की शुरुआत अलवर से इसलिए कराई कि यह वही जिला है, जहां गोरक्षा के नाम पर पहलू खां और रकबर की जानें ली गईं, इसके बाद यह जिला सांप्रदायिक नजरिये से बहुत संवेदनशील बन चुका है। उपचुनाव में कांग्रेस बीजेपी को हराकर बड़ा झटका दे चुकी है। इसके अगले दिन उनकी भीलवाड़ा में भी रैली होनी है, जहां जब-तब कोई न कोई सांप्रदायिक हिंसा की छोटी-बड़ी घटना होती ही रहती है। उपचुनाव में बीजेपी को यहां भी हार का सामना करना पड़ चुका है। इन सारी जगहों पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की भी रैलियां आयोजित की जा रही हैं।
अजमेर में 8 विधानसभा सीटें हैं और अगर 2013 के चुनाव नतीजों की बात करें, तो सभी की सभी सीटें बीजेपी ने जीत लीं थी। इसमें कोई शक नहीं कि वर्ष 2013 के मुकाबले अब बहुत सारे बदलाव आए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इसी अजमेर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस बीजेपी को हरा चुकी है। राहुल गांधी की अजमेर से चुनावी अभियान की शुरुआत भी इसलिए कराई जा रही है कि कांग्रेस की उम्मीदें बहुत उफान पर हैं। पार्टी को लगता है कि उपचुनाव की कहानी को विधानसभा के चुनाव में दोहराया जा सकता है। पार्टी यहां पर गुर्जर, राजपूत, मुस्लिम, ब्राह्मण, ईसाई, माली, वैश्य, एसटी व ओबीसी समुदाय को अपने साथ गोलबंद करने में जुटी हुई है। वहीं, बीजेपी को मुख्य फोकस जाट व रावतों पर है। जातिगत आधार पर अगर देखा जाए तो अजमेर में सबसे ज्यादा जाट और रावत ही हैं। वैसे अगर आप बीजेपी के नेताओं से बात करें, तो उन्हें इस बात का अहसास है कि 2013 जैसा प्रदर्शन करने के लिए वोटों का बंटवार रोकना होगा। इसके लिए वे ‘धार्मिक गोलबंदी’ जैसे शब्द का तो इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसकी जगह ‘राष्ट्रीयता’ और ‘राष्ट्र भावना’ जैसे भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
संघ से जुड़े बीजेपी के बुजुर्ग कार्यकर्ताओं से एक होटेल में बातचीत का मौका मिला। यह टीम डोर टु डोर कैंपेन कर रही है। हमने पूछा कि क्या जातीय समीकरण आप लोग देख रहे हैं अजमेर में? जवाब मिला कि ‘जब आप जाति की बात करेंगे, तो राष्ट्र कमजोर होगा। कांग्रेस यही काम कर रही है, वह जातियों के पाले खींच कर वोट ले रही है और राष्ट्र को कमजोर रही है, लेकिन हमलोग वोटर्स को समझा रहे हैं कि राष्ट्र के लिए एकजुट होना होगा।’ जाति का कोई कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है, सिर्फ राष्ट्र है। स्थानीय कांग्रेस सांसद रघु शर्मा कहते हैं, ‘बीजेपी और संघ के लोग राष्ट्रीयता का सर्टिफिकेट तो बांट रहे हैं, लेकिन खुद उनमें किसी एक का भी स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं रहा।’ एक दुकान पर रुका। परिचय हुआ, यूपी से ताल्लुक सुना, तो बहुत जोर से हंसे। कहने लगे कि योगी जी हमारे यहां भी आ रहे हैं। हम लोग तो डर रहे हैं कि कहीं वह हमारे अजमेर का भी नाम बदलने का ऐलान न कर दें। फिर वह अजमेर का इतिहास बताने लगे। तुरंत अपने फोन पर विकीपीडिया की साइट खोल दी, कहा पढ़ो, इसमें क्या लिखा हुआ। उसमें लिखा हुआ है, अजमेर शहर का नाम अजयमेरू के नाम पर पड़ा है। इसकी स्थापना 1113 ई. में चौहान राजा अजयराज ने की थी। अजयराज ने अपनी राजधानी का नाम अजयमेरु रखा। फिर वह बहुत यकीन के साथ कहते हैं कि अगर योगी जी को कोई इतिहास बता दे, तो वह अजमेर का नाम बदलने का ऐलान जरूर कर देंगे। मैंने कहा कि लेकिन वह तो यूपी के सीएम हैं, तो कहने लगे कि वसुंधरा को बोल के करवा देंगे, यह उन्हीं की तो पार्टी की है। दरगाह शरीफ के ठीक सामने सिर्फ और सिर्फ एक होर्डिंग लगी हुई है, वह है बीएसपी की। स्थानीय उम्मीदवार के लिए उसपर अपील दर्ज है- अपने इस बच्चे को हाथी पर मुहर लगाकर अपना आशीर्वाद दीजिए। हमने अजमेर के मुस्लिम मुहल्लों में जाकर लोगों से बात की। उनके बीच कोई संशय नहीं है। कहते हैं कि यहां मुस्लिम वोटर्स के सामने कोई और विकल्प नहीं है, सिर्फ कांग्रेस ही है और उसी को वे लोग वोट करते हैं।
बीएसपी को लेकर सवाल हुआ, तो कहते हैं कि हमलोगों को मालूम है कि यह राजस्थान है, यूपी नहीं। अब उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, वे लोग वोट भी मांग रहे हैं। बीएसपी को लेकर उनकी सलाह यह होती है कि अगर उन्हें राजस्थान में अपनी पहचान बनानी है, तो कांग्रेस के साथ आना चाहिए, इससे लोगों का उनपर भरोसा बढ़ेगा। अभी उसके अकेले जीतने की कोई उम्मीद नहीं होती, इसलिए हम लोग उसे वोट करने से बचते हैं। फिर यह डर लगता है कि अगर कोई एक बंदा जीत भी गया, तो वह मायावती के कंट्रोल में भी नहीं रहेगा। वह अपने को किसी दूसरी पार्टी में जाकर बेच लेगा। ऐसा सभी छोटी पार्टियों के साथ होता है, उनके एक-दो बंदे बड़ी मुश्किल से चुनाव जीतते हैं। लेकिन चुनाव जीतते ही अपनी बोली लगवा लेते हैं। अजमेर स्थित चूड़ी रोड पर जूलर्स और दूसरे छोटे कारोबारियों की बड़ी तादाद है। हमने उनसे बात की। धंधे के मंदा पड़ जाने से वे बहुत दुखी हैं।

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