मिस्र के शहर शरम अल-शेख में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप-२७) के दौरान कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं। जिस सम्मेलन में चर्चा का मुख्य विषयवस्तु जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए धन का इंतजाम है, वहां कुछ सामने आई जानकारियां बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। मसलन, यह कि अमेरिका, ब्रिटेन, कैनेडा और ऑस्ट्रेलिया ने जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए बने कोष में अपने हिस्से का पूरा चंदा नहीं दिया है। इस कोष का गठन जलवायु परिवर्तन रोकने के उपाय करने में विकासशील देशों की मदद के लिए किया गया था। गैर सरकारी संस्था कार्बन ब्रीफ ने कार्बन उत्सर्जन में विभिन्न देशों के हिस्से और उसके अनुपात में उनकी तरफ से दिए गए धन की तुलना करते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार की है। इस रूप में उसने यह बताने की कोशिश की है कि जलवायु संकट का मुकाबला करने के मामले में इन देशों अपनी जिम्मेदारी किस हद तक निभाई है। धनी देशों ने २०२० तक जलवायु कोष में १०० बिलियन डॉलर का योगदान करने का वादा किया था। लेकिन इस समयसीमा के भीतर उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया।
कार्बन ब्रीफ के मुताबिक अतीत में अमेरिका की उत्सर्जन मात्रा के हिसाब से इस कोष के लिए उसका हिस्सा ४० बिलियन डॉलर बनता था। लेकिन २०२० तक उसने सिर्फ ७.६ बिलियन डॉलर का योगदान किया। ऑस्ट्रेलिया और कैनेडा ने भी उत्सर्जन में अपने हिस्से की तुलना में सिर्फ एक तिहाई रकम का योगदान किया। ब्रिटेन ने अपने उत्सर्जन हिस्से की तुलना में १.४ बिलियन डॉलर कम का चंदा दिया है। गौरतलब है कि जलवायु वार्ताओं के आरंभिक दौर में ही यह सहमति बनी थी कि जिन देशों ने कार्बन उत्सर्जन कर वातावरण को जितना नुकसान पहुंचाया है, उसी अनुपात में वे इस संकट का मुकाबला करने के लिए वित्तीय योगदान करेंगे। धनी देश अपनी उच्च कार्बन उत्सर्जन आधारित जीवनशैली पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं। इसकी कीमत गरीब देश चुका रहे हैँ। इसके बावजूद धनी देश अपने हिस्से का चंदा भी नहीं दे रहे हैं। तो आखिर दुनिया जलवायु परिवर्तन से कैसे बचेगी?



