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दिल्ली के मैदान में ममता बनर्जी, PM के लिए कितनी प्रबल है दावेदारी?

नई दिल्ली। कोलकाता में ममता बनर्जी और दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू की भूख हड़ताल के बाद अब राष्ट्रीय राजधानी में आम आदमी पार्टी ने विपक्षी एकजुटता का मंच तैयार किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुआई में आम आदमी पार्टी आज जंतर मंतर पर संयुक्त विपक्षी रैली करेगी। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू एक दिवसीय भूख हड़ताल के बाद से दिल्ली में ही जमे हुए हैं। उधर, रैली में भाग लेने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मंगलवार रात में दिल्ली पहुंच गईं। दरअसल, पिछले दिनों कोलकाता में सीबीआई के ऐक्शन के बाद केंद्र के खिलाफ धरना देने वालीं ममता बनर्जी का विपक्षी दलों की नजर में कद बढ़ा है।
सीबीआई बनाम कोलकाता पुलिस विवाद में केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोलने पर ममता को लगभग सभी विपक्षी दलों का समर्थन मिला था। इसके बाद ममता प्रधानमंत्री पद की दावेदार के तौर पर उभरी हैं। यहां तक कि बीजेपी और उसके सहयोगी भी इस तरह की संभावना जता रहे हैं। ऐसे में आइए समझते हैं कि क्या फैक्टर्स हैं जो उनके पक्ष में जाते दिख रहे हैं? किसी भी विपक्षी नेता की तुलना में ममता का राजनीतिक करियर लंबा रहा है। वह अब तक 7 बार लोकसभा सांसद चुनी जा चुकी हैं। पहली बार वह 1984 में चुनकर संसद में पहुंची थीं, उस समय राहुल गांधी की उम्र मात्र 14 साल थी। यही नहीं, कांग्रेस और बीजेपी- दोनों सरकारों में वह मंत्री के तौर पर भी अपनी क्षमता को साबित कर चुकी हैं। केजरीवाल और उमर अब्दुल्ला जैसे उनसे कम उम्र के नेता उनका सम्मान करते हैं। पूर्व कांग्रेस नेता बनर्जी की सामान्य तौर पर अब भी सबसे पुरानी पार्टी के नेताओं से अच्छे संबंध हैं। वहीं, NDA कैंप में शामिल पार्टियों के नेताओं तक भी उनकी पहुंच है, जिससे उनकी पीएम दावेदारी को बल मिलता दिख रहा है। पश्चिम बंगाल के बीजेपी चीफ दिलीप घोष और यूपी में बीजेपी के सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) प्रमुख ओम प्रकाश राजभर दोनों नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री पद के लिए बनर्जी सबसे योग्य उम्मीदवार हैं। यही नहीं, बीजेपी की कट्टर सहयोगी अकाली दल के साथ भी ममता के अच्छे समीकरण रहे हैं। 2012 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अपने शपथ ग्रहण में ममता को बुलाया था।
पिछले महीने कोलकाता में ममता ने विशाल विपक्षी रैली आयोजित की थी, जिसमें कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने अपने नेताओं और प्रतिनिधियों को भेजा था। इस रैली में बीजेपी के असंतुष्ट नेता शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा भी पहुंचे थे। प्रधानमंत्री के दावेदार के सवाल का ममता ने जवाब देते हुए कहा था कि लोकसभा चुनावों के बाद पीएम तय किया जाएगा। उनकी तेजतर्रार छवि और मुखरता उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करती है। वह विपक्षी नेताओं के सामने अपनी स्पष्ट राय रखने से पीछे नहीं हटती हैं। 1998 में महिला आरक्षण बिल के खिलाफ विरोध करने पर उन्होंने समाजवादी पार्टी के सदस्य दरोगा प्रसाद सरोज का कॉलर पकड़ लिया था और खींचते हुए उन्हें लोकसभा से बाहर लाई थीं। 2005 में बोलने से मना किए जाने पर उन्होंने लोकसभा के डेप्युटी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल पर कागजात उछाले और अपना इस्तीफा दे दिया था। अगर कांग्रेस तीन अंकों में सीटें जीत सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो राहुल गांधी निश्चित तौर पर पीएम के लिए दावा जताएंगे। उन्हें DMK चीफ स्टालिन का पहले ही समर्थन मिल चुका है।
ममता एक क्षेत्रीय पार्टी की प्रमुख हैं और तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव पश्चिम बंगाल में सीमित है। वैसे, 2012 में पार्टी ने यूपी में एक असेंबली सीट जीती थी। हालांकि इस बार सिटिजनशिप (अमेंडमेंट) बिल के व्यापक विरोध के बीच TMC ओडिसा, असम और झारखंड में भी लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की तैयारी कर रही है। बनर्जी भी इस बिल के विरोध में हैं। अगर टीएमसी लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है और बहुजन समाज पार्टी (एसपी) का प्रदर्शन बेहतर रहता है- जो यूपी में एसपी के साथ गठबंधन कर चुकी है। ऐसी परिस्थिति में मायावती भी पीएम पद के दावेदार के तौर पर सामने आ सकती हैं। पहले भी वह अपनी महत्वाकांक्षा जताती रही हैं, जिसे पिछले साल भी उन्होंने दोहराया था।

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