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जब वक्त बदलता है..

यूरोपीय देशों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को एक मॉडल समझा जाता रहा है। यहां तक कि अक्सर अमेरिका में भी वामपंथी समूह उसे एक आदर्श बताते रहे हैं। लेकिन अब यह आदर्श डोल रहा है। ब्रिटेन में पहले ही ऐसी योजनाओं को बहुत कमजोर किया जा चुका है। अब यूरोप के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में भी इन पर मार पडऩे की शुरुआत हो गई है। तो यह कहने वालों को बल मिला है कि ये यूरोपीय उदारता तब की बात थी, जब औपनिवेशिक शोषण के आधार पर तैयार हुई समृद्धि का फल मिल रहा था। अब जबकि आर्थिक मुसीबत ने आ घेरा है, उदारता जवाब दे रही है। फिलहाल, जर्मन सरकार ने देश में बेरोजगारों को मिलने वाले लाभ को पूरी तरह से बदलने की कवायद शुरू की है। ‘हार्त्स फोर’ नाम की मौजूदा व्यवस्था १८ साल पहले एसपीडी पार्टी के नेता और जर्मनी के चांसलर रहे गेरहार्ड श्रोएडर के शासनकाल में शुरू हुई थी। इसके तहत उन लोगों को सरकार से पैसे मिलते हैं, जिनके पास नौकरी नहीं होती। अब नई व्यवस्था लागू होगी, जिसे ‘बुर्गरगेल्ड’ नाम दिया गया है। इस शब्द का मतलब है नागरिकों का पैसा।
अगर संसद से इसे मंजूरी मिल जाती है, जिसकी काफी संभावना है तो अगले साल से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी। जर्मनी में बेरोजगारों को मिलने वाली सुविधा दो श्रेणियों में बंटी हुई है। पहली श्रेणी में वो लोग आते हैं जो नौकरी ढूंढ रहे हैं। नौकरी करने वालों की नौकरी छूट जाने के बाद लोग दूसरी व्यवस्था के हकदार बनते हैं। आम तौर पर कर्मचारियों की तनख्वाह से एक हिस्सा काट कर इसके लिए जमा किया जाता है और उसी आधार पर कर्मचारी नौकरी छूटने पर इसका लाभ हासिल करते हैं। नई व्यवस्था में जॉब सेंटर से सुझायी गई नौकरी नहीं स्वीकार करने पर सुविधा पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि सुझायी नौकरियों को स्वीकार नहीं करने आप पर प्रतिबंध तुरंत नहीं लगेगा। नौकरी लेने से इनकार करने के बाद छह महीने तक उस पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा। मगर आलोचक इसे नई योजना को स्वीकार कराने की एक चाल समझ रहे हैं।

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