159 Views

चीन से दोस्ती-दुश्मनी दोनों कैसे चलेगी! -हरिशंकर व्यास

नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते और उसके बाद प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू के कई सालों तक चीन के साथ दोस्ती दिखाते रहे। दिखाते क्या रहे चीन के साथ उन्होंने खूब दोस्ती रखी। तभी चीनी कंपनियों का गुजरात में निवेश भी हुआ था। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने साबरमती रिवर फ्रंट पर शी जिनफिंग को झूला झुलाया। बाद में अनौपचारिक वार्ता के लिए वुहान गए। दूसरी अनौपचारिक वार्ता के लिए जिनफिंग भारत आए और ममलापुरम में दोनों के बीच वार्ता हुई। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? पहले डोकलाम में चीन ने भारत की जमीन कब्जाई। उसके बाद पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ करके जमीन पर कब्जा किया। दशकों बाद दोनों देशों के बीच सैन्य झड़प हुई, जिसमें गलवान घाटी में भारत के २० जवान शहीद हुए। अप्रैल २०२० के बाद सारी स्थितियां बदल गईं। पूर्वी लद्दाख में गलवान से लेकर पैंगोंग झील, देपसांग, डेमचक सहित कई जगहों पर भारत और चीन की सेनाएं आमने सामने आ गईं।
एक तरफ यह स्थिति। ढाई साल से दोनों देशों में जबरदस्त तनातनी है तो दूसरी ओर चीन के साथ कारोबार भी बढ़ता जा रहा है। पहली बार भारत और चीन के बीच कारोबार एक सौ अरब डॉलर से ज्यादा हुआ है। पिछले साल यानी २०२१ में भारत और चीन के बीच १२५ अरब डॉलर का कारोबार हुआ, जिसमें भारत का व्यापार घाटा ६९ अरब डॉलर का था। इसमें भारत ने चीन से ९४.२ अरब डॉलर का आयात किया। यह भारत के कुल आयात का १५ फीसदी है। इस साल यानी २०२२ की पहली छमाही में ही चीन के साथ भारत का कारोबार ६७.०८ अरब डॉलर का हो चुका है। इसका मतलब है कि पिछले साल के कारोबार का रिकॉर्ड इस साल टूट जाएगा। सोचें, एक तरफ चीन भारत को चारों तरफ से घेर रहा है, पड़ोसी देशों पर दबाव डाल कर उनको भारत के खिलाफ बना रहा है, सीमा पर सैन्य ताकत बढ़ा कर भारत को घेर रहा है तो दूसरी ओर भारत उसके साथ कारोबार बढ़ाता जा रहा है। उस कारोबार में भी ऐसा नहीं है कि भारत को फायदा है। भारत को बड़ा नुकसान है। भारत की ओर से चीन को जितना निर्यात किया जा रहा है उससे लगभग चार गुना आयात किया जा रहा है।
एक तरफ आत्मनिर्भर भारत का नारा है तो दूसरी ओर देश पूरी तरह से चीन निर्भर होता जा रहा है। देश के तमाम सामरिक जानकार इस बात के लिए भारत की आलोचना कर रहे हैं। सामरिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चैलानी ने पिछले साल का एक आंकड़ा देकर ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी इस बात को कैसे जस्टिफाई करेंगे कि सीमा पर चल रहे गतिरोध के बीच चीन के साथ कारोबार दोगुना हो गया? उन्होंने बताया कि २०२१ के जनवरी से नवबंर के बीच चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा साढ़े ६१ अरब डॉलर का हो गया। उन्होंने यह भी बताया कि यह आंकड़ा भारत के एक वित्तीय वर्ष में कुल रक्षा खर्च के लगभग बराबर है।
इसलिए एक तरफ सीमा विवाद है तो दूसरी ओर चीन के साथ कारोबार है। ऐसे ही एक तरफ चीन से सीमा विवाद सुलझाने के लिए सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हैं तो दूसरी ओर दलाई लामा को बधाई दी जा रही है और साथ ही संसदीय समिति की ओर से दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने की मांग उठ रही है। तो क्या चीन इस बात को नहीं समझ रहा है? उसे पता है कि उसको भारत के साथ कैसे पेश आना है। बस भारत को नहीं पता है कि चीन से कैसे निपटना है। इसलिए भारत की कूटनीति, आर्थिक नीति और सामरिक नीति सब कंफ्यूजन में है और दूसरी ओर चीन लगातार भारत को घेरते हुए है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top