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गरीबों को आरक्षण के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट पहुंची डीएमके

चेन्नई। डीएमके ने मद्रास हाईकोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मिलने वाले आरक्षण कानून को चुनौती दी है। डीएमके का कहना है कि आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं हैं बल्कि यह सामाजिक न्याय की वह प्रक्रिया है जो उन समुदायों के उत्थान का कारण बनता है जिनकी सदियों से शिक्षा और रोजगार तक पहुंच नहीं रही है।
डीएमके के सचिव आरएस भारती ने कहा, ‘यह कानून उन लोगों के समानता के अधिकार के खिलाफ है जो बरसों से शिक्षा और रोजगार से वंचित रहे हैं। हालांकि क्रीमी लेयर (पिछड़ी जाति के लोग जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं) को बाहर करने के लिए फिल्टर के तौर पर आर्थिक मानदंडों का उपयोग किया गया है। आर्थिक आधार पर आरक्षण देना समानता के अधिकार के विरुद्ध है और यह संविधान की मूल भावना पर भी खरा नहीं उतरता है।’ याचिकाकर्ता की तरफ से याचिका को दायर करते हुए वरिष्ठ वकील पी विल्सन ने कहा, ‘यह बात सभी को मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है। हालांकि तमिलनाडु के पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की वजह से यहां सीमा 69 प्रतिशत है। यह नियम अधिनियम 1993 की नौंवी अनुसूची में रखा गया है।’
डीएमके का कहना है कि राज्य में 69 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। वर्तमान संशोधन की वजह से यह आरक्षण सीमा 79 प्रतिशत पर पहुंच जाती है जोकि असंवैधानिक है। याचिकाकर्ता की मांग है कि अदालत इस कानून पर अतंरिम रोक लगाए। माना जा रहा है कि सोमवार को हाईकोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा।

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