टोरंटो,30 सितंबर। खेलकूद से केवल शारीरिक सेहत ही नहीं बल्कि मानसिक सेहत भी सुधरती है। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि नियमित रूप से खेलकूद यानी स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने से मानसिक समस्याओं के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने से खासतौर पर बच्चों को फायदा हो सकता है। अध्ययन के अनुसार, बचपन के शुरुआती दौर में स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाले लड़कों को जीवन में आगे चलकर डिप्रेशन (अवसाद) और एंग्जाइटी (व्यग्रता) जैसी मानसिक समस्याओं का सामना सामान्यतः नहीं करना पड़ता है।
अध्ययन के नतीजों को जर्नल आफ डेवलपमेंट एंड बिहेव्यरल पीडीऐट्रिक्स में प्रकाशित किया गया है। कैनेडा की मांट्रियल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। अध्ययन के मुताबिक, स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाले बालकों में मानसिक समस्याओं का खतरा कम रहता है। ऐसे बच्चे किशोरावस्था में शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय भी रहते हैं। यह निष्कर्ष 690 लड़कों और 748 लड़कियों पर किए गए एक अध्ययन के आधार पर निकाला गया है। पांच से 12 वर्ष की उम्र के दौरान बच्चों की गतिविधियों पर गौर किया गया।
अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता मैरी जोस हार्बेक ने कहा, ‘हम स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाले स्कूली बच्चों और डिप्रेशन व एंग्जाइटी के बीच जुड़ाव को स्पष्ट करना चाहते थे। हम यह भी देखना चाहते थे कि क्या पांच से 12 वर्ष के लड़कों और लड़कियों से इसका अलग-अलग संबंध है या नहीं?’ उन्होंने बताया, ‘खेलकूद में हिस्सा नहीं लेने वाले पांच वर्ष की उम्र के लड़कों को छह से दस साल की उम्र के दौरान डर, नाखुशी और थकावट का सामना करना पड़ सकता है।’ निष्कर्ष के आधार पर विशेषज्ञों ने माता-पिता व अभिभावकों से बच्चों को खेलकूद संबंधी गतिविधियों में सक्रियता बढ़ाने की सलाह दी है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में पढ़ाई, कैरियर तथा पारिवारिक समस्याओं व बदलते सामाजिक परिवेश के कारण बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी तनाव, डिप्रेशन आदि मानसिक समस्याओं के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। जिसके चलते बड़ी संख्या में उन्हें चिकित्सकीय सलाह की आवश्यकता पड़ती है। दुखद बात यह है कि विश्व के अधिकांश हिस्सों में मानसिक समस्याओं के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है। जिसके चलते इस तरह के बच्चों को या तो झाड़-फूंक, जादू टोना आदि का सहारा लेना पड़ता है या वे इन समस्याओं से जीवन भर नहीं उबर पाते। खतरनाक स्थिति तब पैदा हो जाती है जब मानसिक समस्याएं हद से ज्यादा बढ़ जाती हैं और बच्चे आत्महत्या को उद्यत हो जाते हैं।
