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कैसे करें प्रदूषण को काबू? – वेद प्रताप वैदिक

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उ.प्र. के सीमांत क्षेत्रों में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि इन प्रांतों ने तरह-तरह के प्रतिबंधों और सावधानियों की घोषणा कर दी है। जैसे बच्चों की पाठशालाएं बंद कर दी हैं, पुरानी कारें सड़कों पर नहीं चलेंगी, बाहरी ट्रक दिल्ली में नहीं घुस पाएंगे, सरकारी कर्मचारी ज्यादातर काम घर से ही करेंगे। लोगों से कहा गया है कि वे मुखपट्टी का इस्तेमाल बढ़ाएं, घर के खिड़की-दरवाजे प्राय: बंद ही रखें और बहुत जरुरी होने पर ही बाहर निकलें।
ये सब बातें तो ठीक हैं और मौत का डर ऐसा है कि इन सब निर्देशों का पालन लोग-बाग सहर्ष करेंगे ही लेकिन क्या प्रदूषण की समस्या इससे हल हो जाएगी? ऐसा नहीं है कि खेती सिर्फ भारत में ही होती है और खटारा ट्रक और मोटरें भारत में ही चलती हैं। भारत से ज्यादा ये अमेरिका, यूरोप और चीन में चलती हैं। वहां हमसे ज्यादा प्रदूषण हो सकता है लेकिन वहाँ क्यों नहीं होता? क्योंकि वहां की जनता और सरकार दोनों सजग हैं और सावधान हैं।
चीन ने पिछले कुछ साल में 40 प्रतिशत प्रदूषण कम किया है और हमारी दिल्ली प्रदूषण के रेकार्ड तोड़ रही है। इसकी गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में होती है। दिल्ली में दो सरकारें हैं। वे निढाल साबित हो रही हैं। अब कुछ लोग सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा रहे हैं। प्रदूषण रोकने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया जाए, क्या यह बात किसी भी सरकार और जनता के लिए शोभनीय है?
सरकारों ने इस दिशा में कुछ कोशिश जरुर की है। उन्होंने हजारों करोड़ रु. की सहायता करके किसानों को मशीने दिलवाई हैं ताकि वे पराली का चूरा करके उसे खेतों में दबा सकें लेकिन हमारे किसान भाई अपने घिसे-पिटे तरीकों से चिपटे हुए हैं। उनकी मशीनें पड़ी-पड़ी जंग खाती रहती हैं। पंजाब और हरियाणा में पिछले 15 दिनों में पराली जलाने के कई हजार मामले सामने आए हैं लेकिन उनको दंडित करनेवाला कोई आंकड़ा कहीं प्रकट नहीं हो रहा है। सभी पार्टियां एक-दूसरे की टांग खींचने में मुस्तैदी दिखा रही हैं लेकिन वोट के लालच में फंसकर वे लाचार हैं।
यदि पराली जलाने वाले दस-बीस दोषियों को भी दंडित किया गया होता तो हजारों किसान उनसे सबक सीखते। हमारे किसान लोग बहुत भले हैं। उनमें अद्भुत परंपरा प्रेम होता है। सरकारों, समाजसेवियों और धर्मध्वजियों को चाहिए कि वे हमारे किसानों को प्रदूषण-मुक्ति के लिए प्रेरित करें। उनकी प्रेरणा का महत्व सरकारी कानूनों से कहीं ज्यादा उपयोगी सिद्ध होगा।
यदि हम भारतीय लोग इस दिशा में कुछ ठोस काम करके दिखा सकें तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि लाहौर और काठमांडो जैसे पड़ौसी देशों के शहर भी प्रदूषण-मुक्त हो सकेंगे। प्रदूषित या स्वच्छ हवा को आप शासकीय और राष्ट्रीय सीमा में बांधकर नहीं रख सकते। उसके एक देश से दूसरे देश में जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा की जरुरत नहीं होती।

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