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एक अयोग्य अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रखने वाला पहला व्यक्ति बना, नील आर्मस्ट्रांग की है आज पुण्यतिथि

टोरंटो,२५ अगस्त। चांद पर कदम रखने वाले वो दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री थे। मात्र १६ साल की उम्र में उनको पायलट कर्मशियल लाइसेंस मिल गया था। एयरोस्पेस इंजीनियर, नौसेना अधिकारी, परीक्षण पायलट और प्रोफ़ेसर सहित उन्होंने कई नौकरियां कीं पर उनको बचपन से रूचि हवा में उड़ने में ही थी। एक परीक्षण पायलट के रूप में उन्होंने ९०० से अधिक उड़ानें भी भरी थीं। हम आज याद कर रहे हैं नील आर्मस्ट्रांग को जिनकी आज पुण्यतिथि है। आज ही के यानी २५ अगस्त २०१२ को हार्ट अटैक से उनका निधन हुआ था।
आज लोग चांद पर प्लाट खरीद रहे हैं। वहां जाने का सपना देख रहे हैं। पर ये सपना लोगों की आंखों में किसने भरा। जिस चांद को पाना लोगों की ख्वाहिश तो थी पर उसे पाना सपना ही था उस सपने में रंग भरने वाले थे नील आर्मस्ट्रांग।
नील आर्मस्ट्रॉन्ग को बचपन से ही उड़ने का बहुत शौक था। उड़ने का जुनून अमेरिकी नेवी में ले गया और उन्होंने कोरिया युद्ध में फाइटर प्लेन तक उड़ाया। अंतरिक्ष यात्री के लिए योग्य ना होने के बाद भी वे सिविलियन पायलट के रूप में चयनित होकर चरणबद्ध तरीके से नासा के अपोलो ११ अभियान के सदस्य बन चांद पर जा पहुंचे।
नील एल्डन आर्मस्ट्रांग एक अमेरिकी खगोलयात्री और चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति थे। नील आर्मस्ट्रांग का जन्म ५ अगस्त, १९३० को वेपकॉनेटा, ओहायो में हुआ था। उनके पिता का नाम स्टीफेन आर्मस्ट्रांग और माँ वायला लुई एंजेल थीं। तीन भाई बहनों में सबसे बड़े नील को बचपन से ही हवा में उड़ने का बहुत शौक था। छह साल की उम्र में ही उन्हें दुनिया के सबसे लोकप्रिय विमान में उड़ने का अनुभव हुआ। १६ साल की उम्र में वे इतना अनुभव हासिल कर चुके थे कि वे खुद विमान उड़ा सकें। १९४७ में १७ साल की आयु में आर्मस्ट्रांग ने एयरोनॉटिकल इंजिनियर की पढाई पुर्दुर यूनिवर्सिटी से ग्रहण करना शुरू की। कॉलेज जाने वाले वे उनके परिवार के दूसरे इंसान थे।
नील गणित और विज्ञान में काफी तेज़ थे। खगोल विज्ञान और ब्रह्मांड विज्ञान में उनकी ख़ास दिलचस्पी थी। सोलह साल की उम्र में उन्होंने अपना छात्र पायलट लाइसेंस हासिल कर लिया था। उन्होंने तरह तरह के हवाई जहाज उडाये , जिनमे ४,००० किमी प्रति घंटे की गति से उड़ने वाले एक्स-१५ से लेकर जेट ,राकेट ,हेलीकाप्टर और ग्लाइडर आदि शामिल रहे।
नासा में नील आर्मस्ट्रांग ने बतौर इंजिनियर ,टेस्ट पायलट , अन्तरिक्ष यात्री और प्रशाशक के रूप में कार्य किया। १६ मार्च १९६६ को जेमिनी-८ अभियान के तहत वे पहली बार अन्तरिक्ष में गये। इसके बाद अपोलो-२ में बतौर कमांडर वे जुलाई १९६९ को चन्द्रमा की सतह पर उतरे और इतिहास रच दिया। जब उन्होंने चंद्रमा पर अपना पहला कदम रखा तो पूरी दुनिया अभिभूत थी। तक़रीबन ढाई घंटे तक नील और एल्ड्रिन ने चन्द्रमा की धरती के कुछ सैंपल जमा किए और उनपर प्रयोग भी किए।
चंद्र अभियान से लौटकर वर्ष १९७१ तक आर्मस्ट्राँग नासा की एयरोनॉटिक्स यूनिट में बतौर डिप्युटी एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर जुड़े रहे। इसके बाद वे सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बनाए गए और आठ साल वहाँ रहे। सन् १९८२ में वे कंप्यूटिंग टेक्नॉलोजीज फॉर एविएशन इंसर्सन में चेयरमैन बने और सन् १९९२ तक इस पद पर बने रहे। इसके अलावा वे एक एयरोस्पेस इंजीनियर, नौसेना अधिकारी, परीक्षण पायलट, और प्रोफ़ेसर भी थे। नौसेना में रहते हुए उन्होंने कोरिया युद्ध में भी हिस्सा लिया। एक टेस्ट पायलट के रूप में उन्होंने ९०० से अधिक उड़ानें भरी थीं।
एक खास बात जो नील के संबंध में कम ही लोग जानते हैं ।सिविलयन टेस्ट पायलट होने की वजह से वे अंतरिक्ष यात्री होने के योग्यता नहीं रखते थे। १९६२ में प्रोजेक्ट जेमिनी के लिए आवेदन मंगाए थे जिसके लिए सिविलयन टेस्ट पायलटों को योग्य माना गया था। सितंबर १९६२ को ही उन्हें नासा ने बुलाया और वे नासा एरोनॉट्सकॉर्प के लिए चुन लिए गए। वे इस समूह में चुने गए दो सिविलयन पायलट में से एक थे। इसके बाद जेमिनी अभियान के तहत नील तीन बार अंतरिक्ष में गए।
अपने अतुलनीय कार्यो के लिए आर्मस्ट्रांग को बहुत से प्रशंसनीय अवार्ड मिले हैं जिसमे कांग्रेशनल स्पेस मेडल भी शामिल है। नील को सैकड़ों पुरुस्कार और सम्मान मिले ,लेकिन अन्तरिक्ष जितनी ऊँची उपलब्धि के सामने सब गौण पड़ गये। ८२ वर्ष की आयु में २५ अगस्त २०१२ को दिल का दौरा पड़ने से इस महानतम अन्तरिक्ष यात्री का निधन हो गया था,लेकिन उनका नाम अमर है। आज भी अतंरिक्ष विषय पर पढ़ाई करने वाले छात्रों को लोग नील जैसे बनने की बात करते हैं और जब जब चांद पर जाने का जिक्र होता है तो लोग नील को याद करते हैं।

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