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उत्पीड़न के आरोपों से संरक्षण के लिए इंश्योरेंस लेने लगीं कम्पनियाँ

मुंबई। मी टू मूवमेंट के तहत यौन उत्पीड़न के लगातार उछलते मुद्दों के बीच भारतीय कंपनियों को अहसास होने लगा है कि सिर्फ बड़ी या वैश्विक स्तर की कंपनियों को ही नहीं, बल्कि छोटी घरेलू कंपनियों को भी एंप्लॉयमेंट प्रैक्टिसेज लाइबिलिटी कवर की जरूरत है। एंप्लॉयमेंट प्रैक्टिसेज लाइबलिटी कवर में कर्मचारियों द्वारा लिंग, जाति, उम्र अथवा अपंगता आदि के आधार पर विभेद या गलत तरीके से नौकरी से निकाले जाने अथवा उत्पीड़न का आरोप लगाए जाने के खिलाफ संरक्षण मिलता है। इसमें प्रमोशन नहीं मिलने जैसे अन्य संबंधित मामले भी कवर होते हैं।

बजाज अलायंज जनरल इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ तपन सिंघल के मुताबिक, कई कंपनियां डायरेक्टर्स ऐंड ऑफिसर्स (डीएंडओ) कवर नहीं लेती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत में उन पर इस तरह का मुकदमा नहीं होने वाला। उनका कहना है, ‘अब जब इस तरह के ज्यादा-से-ज्यादा मामले सामने आने लगे हैं, तब कंपनियां और इंडिपेंट डायरेक्टर्स ऐसे इंश्योरेंस कवर पर भरोसा करने लगे हैं।’ डीएंडओ पॉलिसी ऐसा कवर है जिसमें शेयरधारकों, ग्राहकों या कर्मचारियों की ओर से मुकदमा दर्ज कराने की सूरत में कंपनी के सीनियर मैनेजमेंट को कानूनी लड़ाई का खर्चा दिया जाता है। फ्यूचर जनरल के एमडी और सीईओ के जी कृष्णमूर्ति राव ने कहा, ‘एंप्लॉयमेंट प्रैक्टिसेज लाइबिलिटी कवर डीएंडओ इंश्योरेंस पॉलिसी का हिस्सा है। हालांकि, इसमें अगर अपराध साबित हो जाए तो प्रोटेक्शन नहीं मिलता है। अगर कानूनी लड़ाई का खर्च दे दिया गया और बाद में अधिकारी दोषी पाया गया तो दी गई रकम वापस ले ली जाती है।’  वैसे भी कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) कानून, 2013 के अस्तित्व में आने से कॉर्पोरेट्स के दायित्वों में इजाफा हुआ है। कानून के तहत एंप्लॉयर्स को कामकाज का सुरक्षित माहौल देना अनिवार्य कर दिया गया है जहां किसी भी प्रकार के उत्पीड़न की आशंका नहीं हो।

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