इधर ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन होने वाला है, जिसमें चीन और भारत के नेता आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त रणनीति बनाएंगे और उधर चीन ने पाकिस्तान के आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को बड़ी राहत दिला दी है। अमेरिका और भारत ने मिलकर मक्की का नाम आतंकवादियों की विश्व सूची में डलवाने का प्रस्ताव किया था लेकिन चीन ने सुरक्षा परिषद के सदस्य होने के नाते अपना अड़ंगा लगा दिया। अब यह काम अगले छह माह तक के लिए टल गया है।
यदि चीन अड़ंगा नहीं लगाता तो मक्की पर भी वैसे ही अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लग जाते, जैसे कि जैश-ए-मुहम्मद के मुखिया मसूद अजहर पर लगे हैं। उसके मामले में भी चीन ने अड़ंगा लगाने की कोशिश की थी। समझ में नहीं आता कि एक तरफ तो चीन आतंकवाद को जड़मूल से उखाडऩे की घोषणा करता रहता है लेकिन दूसरी तरफ वह आतंकवादियों की पीठ ठोकता रहता है। जिन आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तान सरकार ने काफी सख्त कदम उठाए हैं, उनकी हिमायत चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर क्यों करना चाहता है?
क्या इसे वह पाकिस्तान के साथ अपनी ‘इस्पाती दोस्ती’ का प्रमाण मानता है? खुद पाकिस्तान की सरकारें इन आतंकवादियों से तंग आ चुकी हैं। इन्होंने पाकिस्तान के आम नागरिकों की जिंदगी तबाह कर रखी है। ये डंडे के जोर पर पैसे उगाते हैं। ये कानून कायदों की परवाह नहीं करते हैं। पाकिस्तान की सरकारें इन्हें सींखचों के पीछे भी डाल देती हैं लेकिन फिर भी चीन इनकी तरफदारी क्यों करता है? इससे चीन को क्या फायदा है? चीन को बस यही फायदा है कि ये आतंकवादी भारत को नुकसान पहुंचाते हैं।
याने भारत का नुकसान ही चीन का फायदा है। चीन का यह सोच किसी दिन उसके लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है। उसे इस बात का शायद अंदाज नहीं है कि ये आतंकवादी किसी के सगे नहीं होते। ये कभी भी चीन के उइगर मुसलमानों की पीठ ठोककर चीन की छाती पर सवार हो सकते हैं। यदि चीन पाकिस्तान के आतंकवादियों की तरफदारी इसलिए करता है कि वे भारत में आतंकवाद फैलाते हैं तो उसे यह पता होना चाहिए कि इन आतंकवादियों के चलते पाकिस्तान की छवि सारी दुनिया में चौपट हो गई है।
पाकिस्तान के सभ्य और सज्जन नागरिकों को भी सारी दुनिया में संदेह की नजर से देखा जाने लगा है। पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय ‘द फिनांशियल एक्शन टास्क फोर्स’ ने जो प्रतिबंध लगाए थे, उन्हें हटाने की जो शर्तें थीं, वे पाकिस्तान ने लगभग पूरी कर ली हैं लेकिन फिर भी टास्क फोर्स को उस पर विश्वास नहीं है।
पाकिस्तान को हरी झंडी तब तक नहीं मिलेगी, जब तक कि टास्क फोर्स के पर्यवेक्षक खुद पाकिस्तान आकर सच्चाई को परख नहीं लेंगे। पाकिस्तान को चाहिए कि वह यदि इन आतंकवादियों को खुद काबू नहीं कर सके तो उन्हें वह अंतरराष्ट्रीय दंडालयों के हवाले कर दे।
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