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यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह।

यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह।
आनंद ब्राह्मणो विद्वान् न विभेति कुतश्चन्॥

अर्थात् – जो वाणी (आवाज़) मन का साथ (सहयोग) न पाकर वापस लौट जाता है, वह आनन्द स्वरूप ब्रह्म (ईश्वर) को जानने वाला कभी भी किसी से भयभीत नहीं नहीं होता है।

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