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कौन होंगे अगले दलाई लामा?

तिब्बती समुदाय उनके उत्तराधिकार के मुद्दे पर तनाव में है। चीन का कहना है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, इसका निर्णय वह करेगा जैसा कि चीन के अंतिम राजवंश चिंग के सम्राट किया करते थे। चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी की तलाश के लिए एक समानांतर प्रक्रिया शुरू कर दी है। तिब्बतियों का मानना है कि चीन वही करने जा रहा है जो उसने सन १९९५ में तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता के रूप में पंचेम लामा को नियुक्त कर किया था। निर्वासित तिब्बतियों का कहना है कि अधिकांश तिब्बती पंचेम लामा को मान्यता नहीं देते। श्रद्धालु तिब्बतियों का मानना है कि कुछ विशिष्ट सिद्धियाँ प्राप्त लामाओं का पुनर्जन्म तुल्कू के रूप में होता है। वे ही लामा के अवतार होते हैं। और इसलिए केवल दलाई लामा को उनका उत्तराधिकारी चुनने का हक़ है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उत्तराधिकार की प्रक्रिया बिना किसी लफड़े-झगड़े के निपट जाए ताकि करीब ७० लाख तिब्बतियों पर उसका राजनैतिक नियंत्रण बना रहे और चीन के उस क्षेत्र, जिसकी सीमाएं कई देशों से मिलतीं हैं, में स्थिरता बनी रहे।
अगर उत्तराधिकार की प्रक्रिया में विवाद होते हैं या १५वां दलाई लामा, बीजिंग की हाँ में हाँ मिलाने वाला नहीं होता, तो चीन को तिब्बत के इतिहास के अपने संस्करण को मान्यता दिलवाने में परेशानी होगी। जहाँ तक तिब्बतियों का सवाल है, दो दलाई लामा होने से उनकी परेशानियाँ और बढ़ जाएंगीं ।
दलाई लामा ने साफ़ कर दिया है कि उनके पुन: अवतार लेने में चीन की कोई भूमिका नहीं होगी। सन २०११ में एक बयान में उन्होंने कहा था कि जब वे करीब ९० साल के हो जाएंगे (और यही बात उन्होंने अपनी ८८वीं वर्षगांठ पर दोहराई) तब वे शीर्ष लामाओं, तिब्बत के लोगों और तिब्बती बौद्ध धर्म के अन्य अनुयायियों के साथ चर्चा कर तय करेंगे कि दलाई लामा की संस्था का अस्तित्व बना रहना चाहिए या नहीं। करीब २८ साल पहले दलाई लामा ने तिब्बत में एक पुन:अवतरित लामा की पहचान की थी। वो दिन है और आज का दिन है, उस समय छह साल के पंचेम लामा का कुछ पता नहीं है। चीन ने उस लड़के की जगह अपनी पसंद के ३३ साल के एक आदमी को लामा घोषित कर दिया। इस लामा की शानोशौकत में कोई कमी नहीं है परन्तु उसके समर्पित अनुयायिओं की संख्या बहुत कम है। अब वही लामा चीन की पसंद के दलाई लामा को गद्दी पर बैठाने में मुख्य भूमिका अदा करेगा।
पंचेम लामा के साथ जो हुआ, उसे देखते हुए दलाई लामा ने यह घोषित कर दिया है कि वे तिब्बत में पुनर्जन्म नहीं लेंगे। पूरी दुनिया से उनके भक्तगण धर्मशाला आकर उनसे अपने-अपने देशों में पुनर्जन्म लेने की प्रार्थना कर रहे हैं। दलाई लामा का उन्हें जवाब होता है, “भाई, मैं एक आत्मा हूँ। मैं कितनी जगह जन्म ले सकता हूँ।”
इस बीच दलाई लामा का बहुत समय लद्दाख में बीत रहा है। इससे ऐसी अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि शायद अगला दलाई लामा वहीं खोज लिया जायेगा। अगर ऐसा हुआ तो चीन आगबबूला हो जायेगा। इससे ऐसा भी लगेगा कि भारत, जो तिब्बत के मुद्दे पर सोच-समझकर चुप्पी साधे हुए हैं, टकराव की मुद्रा में आ गया है। इस सिलसिले में सबसे भड़काऊ यह हो सकता है कि नया दलाई लामा लद्दाख के काफी ऊंचाई पर स्थित शहर तवांग में मिल जाए जहाँ भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है और जहाँ १६८३ में छटवें दलाई लामा जन्में थे।
इसमें कोई संदेह नहीं कि दलाई लामा की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी का चयन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़े टकराव का सबब बन सकता है, जो भारत और केवल भारत के लिए बहुत जोखिम भरा होगा। दोनों देशों के बीच पहले से ही सीमा विवाद है और अगर चीन और भारत में दो प्रतिद्वंदी दलाई लामा होंगे तो इससे दोनों के बीच तनाव और बढेगा।

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