150 Views
Worrying crisis for biodiversity

जहां मोटापा एक समस्या है

जिस समय दुनिया में बढ़ती गरीबी और कुपोषण की चर्चा है, उसके बीच अचानक मोटापे की समस्या पर बात होने लगे, तो यह बहुत से लोगों को अजीब-सा लगेगा। लेकिन दुनिया के अति धनी लोग इन दिनों इस खबर से खुश हैं कि मोटापा घटाने का एक टीका बन गया है। इसको लेकर उन समूहों में उत्साह इतना ज्यादा है कि दुनिया की जानी-मानी पत्रिका द इकॉनमिस्ट इस बार अपनी कवर स्टोरी इस विषय पर बनाई है। ये चर्चा ठीक उस समय छिड़ी है, जब वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन नाम की संस्था ने एक नई रिपोर्ट जारी की है।
रिपोर्ट में यह अजीब दावा किया गया है कि मौजूदा हालात जारी रहे तो २०३५ तक दुनिया भर में चार अरब से ज्यादा लोग मोटापे से जूझेंगे। यानी अगले १२ वर्षों में दुनिया की ५१ फीसदी आबादी मोटापे का शिकार होगी। मोटापे की चपेट में आने वाले लोगों में बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा होगी। तो उस दुनिया की कल्पना कीजिए, जहां एक तरफ आधी आबादी कुपोषण के कारण कंकाल जैसी अवस्था में घूमती-फिरती नजर आएगी, दूसरी तरफ ओवरवेट लोगों का कारवां होगा।
ताजा रिपोर्ट के मुताबिक २०२० के मुकाबले २०३५ तक मोटापे का शिकार बच्चों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। तब २०.८ करोड़ लड़के और १७.५ करोड़ लड़कियां ओवरवेट श्रेणी में होंगी। फेडरेशन की यह बात सही है कि मोटापे कारण व्यक्ति के कई रोगों का शिकार होने की आशंका रहती है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को आधार बनाया गया है। बॉडी मास इंडेक्स के तहत किसी व्यक्ति की लंबाई और उसके वजन का अनुपात निकाला जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइंस में बीएमआई के २५ से ज्यादा स्कोर को ओवरवेट और ३० से ज्यादा स्कोर को मोटापे की श्रेणी में रखा गया है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मोटापे की वजह से २०३५ तक दुनिया को इलाज पर ४० बिलियन डॉलर ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। तो इस स्थिति में क्या सुझाव तार्किक नहीं लगता है कि अगर धनी लोग धन और भोजन का उचित बंटवारा करने पर राजी हो जाएं, तो यह उनके सहित सबके फायदे की बात होगी?

Scroll to Top