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आप पर मुकदमा हुआ तो क्या होगा?

– अजीत द्विवेदी

भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय खुलने वाला है। सीबीआई और ईडी दोनों एजेंसियों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वो दिल्ली के शराब नीति घोटाले में आम आदमी पार्टी पर भी मुकदमा करने के बारे में विचार कर रही हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ही यह सवाल उठाया था कि जब शराब नीति में हुए कथित घोटाले से प्राप्त पैसे का इस्तेमाल पार्टी ने किसी राज्य के चुनाव में किया है तो पार्टी को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया है? उसके बाद से ही इसका इंतजार हो रहा है कि कब दोनों एजेंसियां सबसे कम समय में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी पर मुकदमा करती हैं। सवाल है कि अगर केंद्रीय एजेंसियों ने आप के खिलाफ मुकदमा किया तो क्या होगा? इस बारे में कानूनी स्थिति का एक पहलू है लेकिन उससे बड़ा पहलू राजनीतिक है। यह पंडोरा बॉक्स खुलने की तरह होगा। आज तक किसी पार्टी के खिलाफ धन शोधन के मामले में कार्रवाई नहीं हुई है। अगर एक पार्टी के के खिलाफ धन शोधन का मुकदमा दर्ज होता है और कार्रवाई होती है तो देश की तमाम पार्टियों के लिए वह खतरे की घंटी होगी। यह एक शुरुआत होगी, जिसका अंत कहां होगा यह किसी को पता नहीं है। अगर केंद्रीय एजेंसी धन शोधन की जांच करेगी तो राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियों के पास जो एजेंसी होगी वह विरोधी पार्टियों के खिलाफ उसका इस्तेमाल करेगी।

आम आदमी पार्टी के ऊपर धन शोधन निरोधक कानून यानी पीएमएलए के तहत मुकदमा हुआ तो क्या क्या संभावना है उस पर विचार करने से पहले यह जानना दिलचस्प होगा कि इससे कब ऐसी स्थिति आई थी और कैसे उसे टाला गया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने २०१४ में एक फैसला दिया था, जिसमें उसने भाजपा और कांग्रेस दोनों को विदेशी चंदा नियमन कानून यानी एफसीआरए के उल्लंघन का दोषी पाया था। १९७६ में बने एफसीआरए कानून के उल्लंघन का दोषी पाए जाने का मतलब हुआ कि इन दोनों पार्टियों ने १९७६ से जो विदेशी चंदा लिया था, उसकी जांच होती और इन दोनों के खिलाफ कार्रवाई होती। लेकिन २०१८ में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कानून में संशोधन कर दिया, जिससे राजनीतिक दलों को मिलने वाला विदेशी चंदा जांच के दायरे से बाहर हो गया। इस तरह भाजपा और कांग्रेस के साथ साथ बाकी सभी पार्टियों की मुश्किल या संभावित मुश्किल समाप्त हो गई। लेकिन उस तरह का कोई काम अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को बचाने के लिए नहीं होगा।

तभी सवाल है कि मुकदमा हुआ तो आम आदमी पार्टी का क्या होगा और क्या मुकदमे का असर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर भी होगा? इन दोनों सवालों के जवाब बहुत महत्व के हैं। वैसे तो किसी भी पार्टी के खिलाफ इस तरह के आपराधिक मुकदमे की मिसाल नहीं है। इसलिए जो भी होगा वह मिसाल बनाने वाला होगा। इससे या तो पार्टियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो जाएगा या सबके लिए खुल जाएगा। इसमें धन शोधन कानून की धारा ७० की व्याख्या सबसे अहम होगी। पीएमएलए कानून की धारा ७० में कंपनियों की गड़बड़ी की जांच का प्रावधान है। लेकिन राजनीतिक दल और कंपनी दोनों अलग अलग चीजें हैं। जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा २९ए के मुताबिक एक संगठन या भारत के कुछ नागरिकों के समूह को चुनाव आयोग राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता दे सकता है। सो, राजनीतिक दल कंपनी की परिभाषा में फिट नहीं होते हैं। कंपनी एक्ट २०१३ के मुताबिक जिस आधार पर कंपनियों का गठन होता है वह राजनीतिक दल से अलग है। तभी जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा २९ए की व्याख्या सबसे अहम है।

कई कानूनी जानकार मान रहे हैं कि ‘एसोसिएशन ऑफ इंडीविजुअल्स’ यानी व्यक्तियों के समूह को राजनीतिक दल की मान्यता दी जाती है और कंपनी एक्ट में भी ‘फर्म या अदर एसोसिएशन ऑफ इंडीविजुअल्स’ का जिक्र है। इस आधार पर ईडी राजनीतिक दल को भी जांच के दायरे में ला सकती है।

एजेंसियों के अलावा एक अहम भूमिका चुनाव आयोग की होगी। चुनाव आयोग के लिए भी यह बिल्कुल नया मामला है। चुनाव आयोग को पार्टियों की मान्यता रद्द करने और नाम, चुनाव चिन्ह आदि सीज करने का अधिकार है। अगर पार्टियों की मान्यता की बात करें तो जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा २९ए के तहत चुनाव आयोग को पार्टियों के पंजीकरण का अधिकार है। लेकिन पंजीकरण रद्द करने का अधिकार सिर्फ तीन ही स्थितियों में है। पहली स्थिति तो यह है कि पार्टी ने अपना पंजीकरण फर्जी दस्तावेजों या दूसरे गलत साधनों का इस्तेमाल करके हासिल किया हो। दूसरी स्थिति यह है कि पार्टी संविधान में विश्वास न करे और उसमें वर्णित समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांत को न माने या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता में विश्वास न करे। तीसरी स्थिति है कि भारत सरकार गैरकानून गतिविधि रोकथाम कानून यानी यूएपीए या इस तरह के किसी दूसरे कानून के तहत किसी पार्टी को गैरकानूनी ठहरा दे तो चुनाव आयोग उसकी मान्यता रद्द कर देगा। लेकिन इस मामले में यह तीनों स्थितियां नहीं दिख रही हैं।

जहां तक चुनाव चिन्ह और पार्टी का नाम सीज करने का मामला है तो इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर की धारा १६ए के तहत कुछ नियम तय किए गए हैं और उन्हीं स्थितियों में चुनाव आयोग किसी पार्टी का नाम या चुनाव चिन्ह सीज कर सकता है। इसके मुताबिक अगर कोई पार्टी चुनाव आचार संहिता का पालन नहीं करती है या चुनाव आयोग की ओर से दिए गए निर्देशों का पालन नहीं करती है तो उसका नाम और चुनाव चिन्ह सीज किया जा सकता है। इस कानून में किसी पार्टी के किसी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल होने पर कार्रवाई का कोई जिक्र नहीं है। सो, अगर आम आदमी पार्टी के ऊपर पीएमएलए के तहत मुकदमा होता है और यहां तक की सजा भी हो जाती है तब भी चुनाव आयोग के लिए कार्रवाई मुश्किल होगी। हां, यह हो सकता है कि यह नया मामला सामने आने के बाद केंद्र सरकार जन प्रतिनिधित्व कानून और चुनाव चिन्ह वगैरह से जुड़े कानून में कुछ बदलाव करे। अगर कानून बदल कर आम आदमी पार्टी पर कार्रवाई होती है तो वह भी एक नजीर बनेगी।

अंत में सबसे अहम सवाल है कि क्या पार्टी के मुखिया के ऊपर भी इस मामले में कार्रवाई हो सकती है? ध्यान रहे चार अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सवालिया लहजे में कहा था कि ईडी के केस के मुताबिक अवैध कमाई का लाभार्थी राजनीतिक दल है, मनीष सिसोदिया नहीं हैं फिर क्यों नहीं पार्टी को आरोपी बनाया गया? तभी से इस बात पर विचार हो रहा है कि क्या अगर पार्टी को आरोपी बनाया जाता है तो मनीष सिसोदिया आरोप मुक्त हो जाएंगे? कानूनी जानकारों के मुताबिक ईडी चाहे तो आप और सिसोदिया दोनों पर मुकदमा चला सकती है। अब पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की स्थिति देखें। वे पार्टी के मुखिया हैं और अगर ईडी पार्टी को आरोपी बनाती है और यह आरोप लगाती है कि शराब नीति घोटाले से हुई अवैध कमाई का इस्तेमाल पार्टी ने राजनीतिक गतिविधियों में किया तो पार्टी के प्रमुख के तौर पर केजरीवाल जांच के दायरे में आएंगे। इस तरह से भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय खुल सकता है, जिसका पटाक्षेप कैसे होगा, यह किसी को अंदाजा नहीं है।

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