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|| मूल्यवान जीवन ||

जीवन में अपने व्यवहार को इस प्रकार बनाओ कि आपकी अनुपस्थिति दूसरों को आपकी रिक्तता का एहसास कराने वाली हो। जीवन जीने की दो शैलियाँ हैं, एक जीवन को उपयोगी बनाकर जिया जाए और दूसरा इसे उपभोगी बनाकर जिया जाए। कर्म तो करना लेकिन निज स्वार्थ को त्यागकर परहित की भावना से करना ही जीवन को उपयोगी बनाकर जीना है।

जीवन को उपभोगी बनाने का अर्थ है, उन पशुओं की तरह जीवन जीना केवल और केवल उदर पूर्ति ही जिनका एक मात्र लक्ष्य है। मैं और मेरा में जिया गया जीवन ही उपभोगी जीवन है और जो जीवन उपभोगी है, वही समाज की दृष्टि में अनुपयोगी भी है। हमारा जीवन दूसरों के काम भी आए इस बात का भी अवश्य चिंतन होना चाहिए। जो उपयोगी है, वही मूल्यवान भी है।

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