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वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया।

वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया।
लक्ष्मी: दानवती यस्य, सफलं तस्य जीवितं।।

अर्थात्: जिस मनुष्य की वाणी मधुर होती है, जिसकी क्रियाएं परिश्रम पूर्वक होती हैं। जिसका धन दान करने में प्रयोग होता है, उसका जीवन सफल होता है।
यह श्लोक व्यक्ति की वाणी, मेहनत, और दान के महत्व को बताता है और यह समझाता है कि यदि ये तीन चीजें सही रूप से निर्वहन की जाएं, तो उसका जीवन सफलतापूर्वक जीता जा सकता है।

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