59 Views

यूक्रेन-रूस युद्ध: बर्बादी के दो साल – श्रुति व्यास

इस हफ्ते यूक्रेन-रूस युद्ध के दो साल पूरे हो गए हैं। मतलब यूक्रेन और रूस दोनों के लिए बर्बादी के दो साल। इन दो वर्षों में दोनों देशों में जनजीवन पूरी तरह अस्तव्यस्त हो गया है। रूस के ड्रोन और मिसाईल हमलों से यूक्रेन नेस्तनाबूद हो गया है वही रूस व्लादिमीर पुतिन की बर्बरता को झेलता हुआ है। और दुनिया? वो दर्शक दीर्घा में है।
इन दो सालों में पलड़ा कभी इस ओर तो कभी उस ओर झुकता रहा है। कभी रूस युद्ध जीतता नजर आता था तो कभी यूक्रेन की स्थिति मजबूत होती दिखती थी। इस पूरे दौर में पश्चिम ने रूस पर पाबंदियां लगाए रखीं और यूक्रेन के जेलेंस्की
धन और समर्थन हासिल करने के लिए भागदौड़ करते रहे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक प्रस्ताव पारित कर रूस से यूक्रेन की ज़मीन पर कब्जा छोडऩे की मांग की लेकिन इसने पुतिन को और वहशी बना दिया। अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया लेकिन इससे पुतिन की ताकत और बढ़ी। युद्ध के मोर्चे पर रूस के कब्जे वाले यूक्रेनी क्षेत्र में ०.२ प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
युद्ध को ले कर दुनिया बंटी हुई है। रूस के मामले में पश्चिम एक खेमे में था तो रूस और उसके साथी दूसरे खेमे में। भारत रूस के साथ बना हुआ है। अलेक्सेई नवेलनी की मृत्यु के बाद म्युनिख में हुए सुरक्षा सम्मेलन में भाजपा के प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने साफ शब्दों में कहा कि भारत रूस का अभिन्न मित्र और साथी था और रहेगा। मोदी के दौर में मोदी के भारत को व्लादिमीर पुतिन के रूप में एक अज़ीज़ दोस्त मिल गया है। भारत ने युद्ध अपराधी पुतिन को पैसा कमाने में जितनी मदद की है उतनी किसी और देश ने नहीं की। आखिरकार यह कलयुगी अंतर्राष्ट्रीय संबंध हैं। युद्ध अपराधी, मित्र बन जाते हैं और मित्र, युद्ध अपराधी बन जाते हैं।
इस तरह युद्ध के इन दो सालों में हर कोई जीत रहा था और हर कोई हार भी रहा था। इसके असर में देशों खजाने खाली हुए। अर्थव्यवस्थाएं पटरी से उतर गईं। लोगों का मूड खऱाब होता गया। पश्चिम की चमक कम होती गई। और बाकी दुनिया की ताकत और हिम्मत दोनों बढ़ती गईं।
युद्ध के दो साल पूरे होते-होते खबरें चल रही हैं कि पुतिन जीत रहे हैं। अचानक हालात पुतिन के पक्ष में होते नजर आ रहे हैं। उन्हें कई कत्लों की कोई सजा नहीं भुगतनी पड़ी है, जिनमें से सबसे ताज़ा है अलेक्सेई नवेलनी की मौत। उन पर प्रतिबंधों का कोई असर नहीं हुआ है। बल्कि उन्होंने विदेशों से हथियार हासिल कर लिए हैं। उन्हें ईरान से ड्रोन और उत्तरी कोरिया से तोपों के बम मिले हैं। वे ग्लोबल साउथ को अमेरिका के खिलाफ खड़ा करने में सफल रहे हैं। वे पश्चिम के इस दृढ़ विश्वास को कमजोर करने में कामयाब रहे हैं कि यूक्रेन इस युद्ध के बाद एक संपन्न यूरोपीय लोकतंत्र के रूप में उभर सकता है और उसे उभरना चाहिए। और ऐसा होना भी चाहिए। पुतिन ने दृढ़ विश्वास और धैर्य का परिचय दिया है। वे युद्ध के कई सालों तक खिंचने के लिए तैयार हैं, इसके बावजूद कि डोनबास क्षेत्र के अवडिविका शहर पर कब्जे के लिए हुई लड़ाई में हर दिन उनके ९०० सैनिक मारे गए।
यूक्रेन, जो एक समय मजबूत स्थिति मे था अब काफी कमजोर है क्योंकि पश्चिम भी अब दुर्बल स्थिति में है। अमेरिका और यूरोप में दबी जुबान से कहा जाने लगा है कि यूक्रेन को धन और हथियार देना उन्हें पानी में फेंकने जैसा है। ऐसा लगता है कि २०२४ में रूस युद्ध लडऩे के लिए बेहतर स्थिति में होगा क्योंकि उसके पास ज्यादा ड्रोन और तोपों के गोले होंगे। उसकी सेना ने कुछ किस्मों के यूक्रेनी हथियारों का मुकाबला करने की इलेक्ट्रानिक युद्ध की तकनीकी सफलतापूर्वक तैयार कर ली हैं और क्योंकि पुतिन अपने ही लोगों पर निष्ठुरता से बर्बरता कर रहे हैं तो देश में भी उनकी स्थिति मजबूत है। विपक्ष और असहमति का सफाया हो गया है और वे रूसियों को यह भरोसा दिलाने में सफल हैं कि रूस पश्चिम के विरूद्ध अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। आम रूसी भले ही युद्ध को पसंद न करते हों, लेकिन वे युद्ध के आदी हो गए हैं। अर्थव्यवस्था पर धन कुबेरों की पकड़ मजबूत है और वे बहुत पैसा कमा रहे हैं, इतना कि वे युद्ध में मारे जाने वालों के परिवारों को जिंदगी भर वेतन देने में पुतिन की मदद कर सकते हैं।
यह सचमुच दु:खद है कि भाग्य पुतिन पर मेहरबान है। उनके सितारे बुलंद हैं। राजनीतिक हालात, सेना और जनता का मूड सब उनके पक्ष में हैं। वहीं यूक्रेन और जेलेंस्की निराशा और अंधकार में धकेल दिए गए हैं। वहां उच्च पदस्थ व्यक्तियों में आपसी टकराव है। आंतरिक रायशुमारी से लगता है कि घोटालों और यूक्रेन के भविष्य संबंधी चिंताओं के चलते मतदाताओं के बीच जेलेंस्की की छवि को धक्का पहुंचा है। युद्ध के लिए उपलब्ध धनराशि घटती जा रही है, अमेरिकी कांग्रेस और पैसा देने में हिचकिचा रही है और यूरोपीय संघ में रणनीतिक दूरदृष्टि का अभाव है। जेलेंस्की और यूक्रेन के प्रति मित्र देशों का समर्थन कम होता जा रहा है।
और यदि २०२४ में रूस-यूक्रेन युद्ध अपने चरम पर पहुंचा तो वह न केवल इन दोनों देशों के लिए बल्कि सारी दुनिया के लिए भयावह होगा।

 

Scroll to Top