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This era of democracy!

लोकतंत्र का यह दौर!

ब्राजील में छह जनवरी को २०२१ को वॉशिंगटन में हुई घटना दोहराई गई है। फर्क सिर्फ यह है कि अमेरिकी संसद भवन पर डॉनल्ड ट्रंप समर्थकों ने तब धावा बोला था, जब उनके नेता अभी ह्वाइट हाउस में मौजूद थे। ब्राजील में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट पर पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के समर्थकों ने नए राष्ट्रपति लुइज इनेसियो लूला दा सिल्वा के पदभार ग्रहण करने के ठीक एक हफ्ते बाद धावा बोला। हालांकि कुछ घंटों की मशक्कत के बाद सुरक्षा बलों ने इन सत्ता केंद्रों को उस धुर-दक्षिणपंथी भीड़ से खाली करा लिया, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में सरकारी प्रतिष्ठानों के सामने बोल्सोनारो समर्थक की छिटपुट हिंसा उसके बाद भी जारी रही। गौरतलब है कि बोल्सोनारो ने अक्टूबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार को ट्रंप की तर्ज पर ही स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। ट्रंप समर्थकों की तर्ज पर उनके समर्थक भी अभी तक चुनाव नतीजे को स्वीकार नहीं कर पाए हैं। गुजरे तीन महीनों में उन्होंने लगातार सेना से अपील की है कि वह सत्ता संभाल ले।
सवाल है कि यह लोकतंत्र का कैसा दौर है? समाजों में बढ़ते ध्रुवीकरण के साथ चुनाव नतीजों को सहजता से स्वीकार कर लेने का चलन कमजोर पड़ता जा रहा है। इस प्रवृत्ति के लिए सिर्फ कुछ गुमराह लोगों को जिम्मेदार ठहराना समस्या का सतहीकरण होगा। दरअसल, हुआ यह है कि गुजरे दशकों में समाजों में लोकतंत्र की प्रक्रिया आगे बढऩे के साथ परंपरागत रूप से सत्तासीन/वर्चस्वशाली रहे तबकों के हित प्रभावित हुए। अब हाल के दशकों में उन्होंने पलटवार किया है। इसके लिए धर्म, नस्ल, आदि के आधार पर उन्माद फैलाने की सुविचारित योजना के जरिए उन्होंने अपना एक बड़ा समर्थक बनाया है। सोशल मीडिया ने उनके लिए इस मकसद को हासिल करना आसान बनाया है। इस सारी योजना के जरिए लोकतंत्र को पलट कर कुलीनतंत्र (ऑलिगार्की) लागू करने के प्रयास होते हम देख रहे हैं। ब्राजील से आई खबरों के मुताबिक बोल्सोनारो समर्थकों के पीछे मुख्य रूप से खनन, भूमि और वित्तीय स्वार्थ रखने वाले समूहों का हाथ है। तमाम लोकतांत्रिक देशों को इस घटना और इस प्रवृत्ति पर विचार करना चाहिए। यह सतर्क होने का वक्त है।

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