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मणिपुर की व्यथा कथा

उज्जवल चौधरी

विपक्षी गठबंधन इंडिया के प्रतिनिधिमंडल की मणिपुर यात्रा से यह बात फिर सामने आई है कि यह राज्य किस तरह एक गृह युद्ध जैसी हालत में जी रहा है। जहां दो समुदायों के बीच अविश्वास और द्रोह का भाव इतना गहरा जाए कि लोग एक दूसरे से बचने के लिए बंकर बनाने लगें, तो इससे अधिक चिंता और परेशानी की बात और क्या हो सकती है? इसके अलावा राहत शिविरों में रहने वाले लोगों की अपनी व्यथा है, जिनकी पूरी जिंदगी एक तरह से तबाही के कगार पर पहुंच गई है। बच्चों की शिक्षा और आम जन की रोजी-रोटी के साधन उनसे दूर हो गए हैँ। मणिपुर की यह व्यथा-कथा इसके पहले तब सामने आई थी, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वहां का दौरा किया था। हाल में दो महिलाओं की नग्न परेड कराने का वीडियो सामने आने के बाद राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान भी इस राज्य में बदतर होती स्थिति की तरफ गया है। उनसे मैतेई और कुकी समुदाय के राहत शिविरों में सुविधाओं के भारी अंतर की कहानियां भी अब लगातार सामने आ रही हैं।
उनकी रिपोर्टों से भी यही सामने आता है कि मणिपुर ऐसे संकट में है, जैसा इसके पहले भारत में शायद ही कहीं हुआ होगा। अगर वहां गए विपक्षी नेताओं ने यह आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार की लापरवाही और राज्य सरकार की मिलीभगत से स्थिति इस हद तक पहुंची है, तो उसे निराधार नहीं कहा जा सकता। बल्कि जनमत का एक बड़ा हिस्सा इस आरोप को गंभीरता से लेगा। यह आम समझ है कि किसी भी स्थान पर दंगे या सामुदायिक टकराव हो सकते हैं, लेकिन ये महीनों तक खिंचते नहीं रह सकते- अगर सचमुच प्रशासन निष्पक्षता और कुशलता से उसे रोकने के प्रयास में जुटा हुआ हो। जाहिर है, विपक्षी नेता अनेक गंभीर प्रश्न लेकर मणिपुर से लौटेंगे और लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान सरकार के सामने रखेंगे। सरकार से अपेक्षा यह है कि वह विपक्षी राज्यों को निशाना बनाने की रणनीति के बजाय इन प्रश्नों का माकूल जवाब दे, ताकि मणिपुर और बाकी देश में भी फिर से भरोसे का माहौल बन सके।

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