अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्था ऑक्सफेम की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि हर वर्ष जब स्विट्जरलैंड के शहर दावोस में दुनिया भर के आर्थिक एवं राजनीतिक कर्ता-धर्ता जुटते हैं, तो वह उन्हें आगाह करता है। वह बताता है कि ये कर्ता-धर्ता जिन नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं, वह सबकी खुशहाली लाने के अपने वायदे में लगातार फेल हो रही हैं। ऑक्सफेम तथ्यों के साथ बताता है कि इन नीतियों आर्थिक गैर-बराबरी को किस हद तक बढ़ा दिया है। इस संस्था ने अपनी ताजा रिपोर्ट में विश्व अर्थव्यवस्था पर अरबपतियों के बढ़ते शिकंजे पर रोशनी डाली है। उसने बताया है कि शीर्ष पांच अरबपतियों की संपत्ति २०२० के बाद से दोगुनी हो गई है। यानी जब कोरोना महामारी की मार से आम जन की अर्थव्यवस्था बिगड़ी, इन अरबपतियों के लिए ये आपदा एक बेहतरीन अवसर साबित हुई। ऑक्सफेम ने बताया है कि २०२० के बाद से अरबपतियों की संपत्ति और भी बढ़ गई है, जबकि दुनिया की ६० फीसदी आबादी की आय घट गई है।
ऑक्सफेम की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के शीर्ष पांच सबसे अमीर व्यक्तियों- इलॉन मस्क, बर्नार्ड अरनॉल्ट, जेफ बेजोस, लैरी एलिसन और मार्क जकरबर्ग- की संयुक्त संपत्ति साल २०२० के बाद ११४ फीसदी या ४६४ अरब डॉलर से बढ़कर ८६९ अरब डॉलर हो गई है। ऑक्सफेम ने पाया कि एक अरबपति या तो बड़ी कंपनियां चलाता है या दुनिया की दस सबसे बड़ी कंपनियों में से सात में प्रमुख शेयरधारक होता है। एक अनुमान के मुताबिक शीर्ष १४८ कंपनियों ने १.८ ट्रिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया, जो तीन साल के औसत से ५२ प्रतिशत अधिक है। इससे शेयरधारकों को भारी रिटर्न मिला, जबकि लाखों श्रमिकों को जीवनयापन संकट का सामना करना पड़ा, क्योंकि महंगाई के कारण वास्तविक रूप से वेतन में कटौती हुई। ऑक्सफेम ने कहा है कि यह असमानता कोई संयोग नहीं है। बल्कि अरबपति वर्ग यह सुनिश्चित कर रहा है मौजूदा व्यवस्था अन्य सभी की कीमत पर उन्हें ज्यादा फायदा पहुंचाएं। यही कारण है कि जहां अरबों लोग महामारी, आर्थिक बदहाली, महंगाई और युद्ध की विभीषिका झेल रहे हैं, वहीं अरबपतियों की संपत्ति में उछाल आ रहा है।
