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खाई बहुत बड़ी है

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू के साथ नई दिल्ली में हुई वार्ता का सार यही है कि आपसी रिश्ते को लेकर दोनों देशों की समझ में भारी अंतर बना हुआ है। ली शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने दिल्ली आए, तो दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों को आमने-सामने बैठ कर आपसी रिश्ते की समीक्षा करने का मौका मिला। बैठक के तुरंत बाद भारत की ओर से एक बयान जारी किया। चीन ने २४ घंटे बाद यानी अगले दिन अपना बयान जारी किया। साझा बयान जारी न होना अपने-आप में असहमति का संकेत होता है। बहरहाल, भारत के बयान में लहजा सख्त रहा। इसके मुताबिक चीनी रक्षा मंत्री को बताया गया कि सीमा पर की घटनाओं ने द्विपक्षीय समझौतों का आधार कमजोर कर दिया है। जब तक सीमा पर शांति कायम नहीं होती, द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते। मगर चीन के बयान में यह संकेत दिया गया कि सब कुछ ठीक-ठाक है।
इसमें भारत को नसीहत दी गई कि वह सीमा पर के विवाद को सही संदर्भ में रखे और इस बीच आपसी रिश्तों को मजबूत करना जारी रखे। कहा जा सकता है कि चीनी पक्ष के इस तरह भारतीय रुख से अप्रभावित रहने का मौका भारत सरकार ने ही दिया है। जून २०२० में प्रधानमंत्री ने ऐलान कर दिया था कि चीन की तरफ से कोई घुसपैठ नहीं हुई। फिर २०२१ के आरंभ में केंद्रीय मंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह कह दिया कि चीन ने जितनी बार घुसपैठ की है, उससे ज्यादा ऐसा भारत ने किया है। सितंबर २०२१ में मास्को में चीनी विदेश मंत्री के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर की मुलाकात हुई, जिसमें जयशंकर उस दस्तावेज पर दस्तखत करने को राजी हो गए, जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा की जगह सीमा शब्द का इस्तेमाल किया गया था। जानकारों के मुताबिक इसे चीन ने सीमा विवाद पर १९५९ के उसके प्रस्ताव पर भारत की मुहर मान लिया है। भारत सरकार को पहले इन मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। वरना, दोनों देशों के बीच समझ की खाई चौड़ी होती जाएगी।

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