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आयीं हे सुरुज देव, लीहीं न अरघिया हमार पूर्वाञ्चल के नदियों एवं जलाशयों के तट पर श्रद्धा का महापूर उमड़ा है । भारती प्रजा अपने प्रत्यक्ष देव को अपना समस्त अनुग्रहीत भाव समर्पित करने हेतु व्रत-विनत भाव से एकत्र हुई