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तुम्हारे तट पर ही बीतती है जून की छुट्टियों की पसीने से भींगी हुई शाम बिरला हाउस से निकले अगणित चमगादड़ अपशकुन की तरह छा जाते हैं तुम्हारे शीतल जल के ऊपर जिन्हें हम चमगादड़ समझते हैं वे चमगादड़ नही