गुरोर्यत्र परीवादो निंदा वापिप्रवर्तते ।

February 2, 2024

गुरोर्यत्र परीवादो निंदा वापिप्रवर्तते । कर्णौ तत्र विधातव्यो गन्तव्यं वा ततोऽन्यतः ॥ भावार्थ : जहाँ गुरु की निंदा होती है वहाँ उसका विरोध करना चाहिए । यदि यह संभव न हो तो कान बंद करके बैठना चाहिए; और (यदि) वह

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