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भारतीय राजनीति में कलंक दोष – अजय दीक्षित

अहं जब सिर चढ़कर बोलता है तो आदमी को अपनी जीत पर उतनी खुशी नहीं होती जितनी दूसरे की हार पर होती है । भारतीय राजनीति में आज लगभग यही हो रहा है । हाल में बहुजन समाज पार्टी और सपा के बीच मायावती और अखिलेश का जो वाक युद्ध चला वह इसी बात का संकेत कर रहा है ।
मध्यप्रदेश में यदि कांग्रेस चार-छ: सीटें समाजवादी पार्टी को दे देती तो शायद सपा सपोर्टरों का वोट कांग्रेस को मिल जाता और वह ज्यादा सीटें जीत सकती थी । उसकी सरकार बनती या नहीं, यह दूसरी बात है । पर यदि सपा और कांग्रेस मिलकर मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ते तो शायद संभावना थी कि कांग्रेस का मुख्यमंत्री बन जाता । खैर, अब भाजपा को जब निश्चय है कि वह सन् २०२४ का लोकसभा चुनाव जीत रही है तो क्यों कर वह विपक्ष को पूरी तरह बदनाम करने पर लगी है । कांग्रेस यदि रामलला के कार्यक्रम में नहीं जा रही है तो वे हिन्दू विरोधी कैसे हो गये ? हिन्दू धर्म मात्र प्रभु राम तक सीमित नहीं है । सगुण भक्ति में बहुत से संत मात्र कृष्ण भक्त हैं । दक्षिण में शैव भक्त ज्यादा हैं, उनके लिए शिव ही प्रधान हैं। बंगाल और पूर्व में शाक्त ज्यादा हैं । उनके लिए दुर्गा ही प्रधान नहीं ।
जो ईश्वर की सत्ता को नहीं मानते, वे भी हिन्दू हैं। छ: दर्शनों में सांख्य और मीमांसा ईश्वर की सत्ता को नहीं मानते । पाणिनी वैयाकरण के स्फोट को ईश्वर मानता है । चार्वाक कहते हैं कि जब तक जियो ऋण लेकर घी पियो– यावत् जीवते ऋणं कृत्वा धृत्म् पीवते । बौद्ध बुद्ध को एक मात्र ईश्वर मानते हैं । जैन महावीर को एक मात्र ईश्वर मानते हैं ।
कहावत है कि डाकुओं ने एक राजा को बलि देने से छोड़ दिया था क्योंकि उसका अंग-भंग हो चुका था । पूर्ण मानव कौन है ? जो सोलह संस्कारों को नहीं मानता, या अग्नि के सामने ली जाने वाली शपथ को नकारता है, उसको कैसे परिभाषित करेंगे ?
हर बात पर और हर किसी के कथन पर भाजपा प्रवक्ताओं की प्रतिक्रिया से कम से कम देश को बुद्धिजीवी वोटर तो इसे ठीक नहीं मानते । यूं सभी राजनैतिक दलों की दृष्टि में यह बुद्धिजीवी अल्पसंख्या में हैं और उनके वोट मिले या न मिलें इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता । माननीय प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों को सलाह दी है कि आक्रामक न बनें, भक्ति और श्रद्धा दिखलायें । परन्तु भाजपा के कुछ मंत्री गण व लगभग सभी प्रवक्ता आक्रामकता की भूमिका में हैं ।
२२ तारीख का कार्यक्रम स्वयं केन्द्र और राज्य की सरकारें उसे सरकारी (या कहें भाजपा का) कार्यक्रम बना रही हैं । फैजाबाद के लिए (जो अब अयोध्या हैं) १० दिन तक सभी ट्रेनें रद्द रहेंगी। उत्तर प्रदेश में २२ जनवरी को सार्वजनिक अवकाश रहेगा । केन्द्र के उड्डयन विभाग की ओर से निर्देश है कि २२ तारीख के आसपास वाल्मीकि एयरपोर्ट (फैजाबाद एयरपोर्ट ) पर सामान्य फ्लाइटें नहीं आयेंगी । अयोध्या में केवल इन्वाइटी ही प्रवेश कर सकेंगे? संविधान की कौन सी धारा या कानून कहता है कि आप स्वतंत्र विचरण नहीं कर सकते । प्राण प्रतिष्ठा के समय गर्भगृह में मात्र मोदी जी व पुरोहित रहेंगे । आगुन्तकों के ठहरने, भोजन, विश्राम, आवागमन की व्यवस्था उत्तर प्रदेश सरकार कर रही है । तो यदि विपक्ष इसे सरकारी कार्यक्रम कहता है, तो कौन सा गुनाह करता है ।
यदि सबका विकास, सबका साथ चाहिए तो सब का विश्वास और सबका प्रयास भी जरूरी है । स्वयं भाजपा प्रवक्ताओं की आक्रामकता इसे सरकारी कार्यक्रम बना रही है । २२ तारीख को भीड़ रोकने के लिए नियम बनाये जा सकते हैं। उनके रहने, खाने, आवागमन की व्यवस्था भी की जा सकती है । पर यदि कोई दूसरे को हराकर अपनी जीत मानता हो तो यह माननीय दृष्टि से ठीक नहीं है । मोदी जी स्वयं बहुत संवेदनशील हैं । वे मन्दिर निर्माण के श्रमिकों के पैर धोते हैं । उनका सहज स्वभाव ही उन्हें बड़ा बनता है । भाजपा के प्रवक्ता अपनी आक्रामकता से उनके मंतव्य को ही ठेस पहुंचा रहे हैं । प्रभु श्री राम सबके हैं। जो राम को नहीं मानते, राम की कृपा उन पर भी है । राम तो सर्वकालिक, सर्वदेशीय और सबके हैं । कृपया इन्हें सबका बना रहने दें ।

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