चारों युग प्रताप तुम्हारा।
है प्रसिद्ध जगत उजियारा।।
रूद्र देह तजि नेह बस हर ते भे हनुमान।
श्रीव्यास जी ने राजा परीक्षित से कहा- परीक्षित होनी तो होके रहती है, इसे कोई बदल नही सकता। आज मैं तुम्हें उस रहस्य को बताता हूँ, जो दुर्लभ है।
एक समय सृष्टि से जल तत्व अदृश्य हो गया। सृष्टि में त्राहि- त्राहि मच गयी और जीवन का अंत होने लगा तब ब्रह्माजी, विष्णुजी, ऋषिगण तथा देवता मिलकर श्रीशिव जी के शरण में गए और शिवजी से प्रार्थना की और बोले- नाथों के नाथ आदिनाथ अब इस समस्या से आप ही निपटें। सृष्टि में पुन: जल तत्व कैसे आयेगा।
देवों की विनती सुनकर भोलेनाथ ने ग्यारहों रुद्रों को बुलाकर पूछा, आप में से कोई ऐसा है जो सृष्टि को पुनः जलतत्व प्रदान कर सके। दस रुद्रों ने मना कर दिया। ग्यारहवाँ रुद्र जिसका नाम हर था उसने कहा मेरे करतल में जलतत्व का पूर्ण निवास है।
मैं सृष्टि को पुन: जलतत्व प्रदान करूँगा लेकिन इसके लिए मुझे अपना शरीर गलाना पडेगा और शरीर गलने के बाद इस सृष्टि से मेरा अस्तित्व मिट जायेगा।
तब भगवान शिव ने हर रूपी रूद्र को वरदान दिया और कहा-
इस रूद्र रूपी शरीर के गलने के बाद तुम्हे नया शरीर और नया नाम प्राप्त होगा और मैं सम्पूर्ण रूप से तुम्हारे उस नये तन में निवास करूंगा जो सृष्टि के कल्याण हेतु होगा।
हर नामक रूद्र ने अपने शरीर को गलाकर सृष्टि को जलतत्व प्रदान किया और उसी जल से एक महाबली पवनपुत्र बजरंगबली की उत्पत्ति हुई। जिन्हें हम हनुमानजी के नाम से जानते हैं।
यह घटना सतयुग के चौथे चरण में घटी। शिवजी ने हनुमान जी को राम नाम का रसायन प्रदान किया। हनुमानजी ने राम नाम का जप प्रारम्भ किया। त्रेतायुग में अन्जना और केशरी के यहाँ पुत्र रूप में अवतरित हुए।
इसलिए बाबा तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा में कहा है-
शंकर सुवन केशरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
दोहा-
तीन लोक चौदह भुवन कर धारे बलवान।
राम काज हित प्रगट भे बीर बली हनुमान।।
चौपाई-
अजय शरण तुम्हरे हनुमंता।
नहि देखा तुम सम कोउ संता।।
कृपा करहु मो पर बलधारी।
भवं भवानी हर तिरपुरारी।।
दोहा-
राम नाम की है सपथ ये सृष्टी के नाथ।
परम् ज्ञान मोहि दीजिए साक्षी श्री रघुनाथ।।
जय बजरंग बली।
जय जय सियाराम।