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संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को रामलीला मैदान

यह स्वागत-योग्य है कि दिल्ली पुलिस ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को रामलीला मैदान में महापंचायत लगाने की इजाजत दी। इसे प्रशासन के रुख में एक बड़े बदलाव के रूप में लिया जाएगा। इस सिलसिले में यह याद करना उचित होगा कि २०२० में भी किसान संगठन तीन कृषि कानूनों पर विरोध जताने के लिए दिल्ली आ रहे थे। मगर सरकार ने उन्हें राजधानी में प्रवेश नहीं करने दिया। नतीजा यह हुआ कि राष्ट्रीय राजधानी के तीन सीमा-स्थलों पर किसानों ने डेरा डाल दिया, जो १३ महीनों तक चला।
पिछले महीने एसकेएम से निकले एक छोटे गुट ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसान कर्ज माफी की मांग पर जोर डालने के लिए दिल्ली की तरफ कूच किया, तब उन्हें पंजाब-हरियाणा की सरहद पर स्थित शंभू बॉर्डर पर रोक दिया गया। वहां पुलिस ने जो सख्त कार्रवाइयां कीं, उसकी रिपोर्टिंग अब दुनिया भर में हो चुकी है। इस पृष्ठभूमि में एसकेएम को रामलीला मैदान तक जाने की इजाजत मिलना एक सुखद घटना महसूस हुई है। लोकतंत्र में शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन करना नागरिकों का अधिकार है।
प्रशासन ने इस बार इस मूलभूत सिद्धांत को स्वीकार किया है। इससे संभावित टकराव से बचा जा सका है। साथ ही इससे वह स्थिति बनी है, जिसमें किसानों की शिकायतों और उनकी मांगों पर सकारात्मक ढंग से राय-मशविरे की गुंजाइश बनती है। अब उचित यह होगा कि किसान मजदूर महापंचायत में जो चर्चा हुई, सरकार उस पर गंभीरता से ध्यान दे। उसे लोकतांत्रिक विचार-विमर्श की भावना का प्रदर्शन करते हुए किसान और मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की पहल करनी चाहिए। किसानों की मांगों को मानने में उसके सामने क्या अड़चनें हैं, उसे वह किसान संगठनों को प्रत्यक्ष रूप से बता सकती है।
दोनों पक्षों की अपनी विवशताओं के बीच मिलन बिंदु कहां हो सकता है, अगर नजरिया सकारात्मक हो, तो उसे ढूंढना असंभव नहीं है। फिलहाल उम्मीद करनी चाहिए सरकार के रुख में बदलाव सिर्फ चुनावी कारणों से नहीं है। लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो फिर यही कहा जाएगा कि वर्तमान के टकराव को कुछ समय के लिए महज टाला भर गया है।

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