– हरिशंकर व्यास
राहुल गांधी २३ सितंबर को जयपुर में कांग्रेस के नए मुख्यालय के शिलान्यास कार्यक्रम में पहुंचे तब उन्होंने एक कार्यक्रम में पांच राज्यों को विधानसभा चुनाव को लेकर भविष्यवाणी की। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सरकार बनाएगी लेकिन राजस्थान में कांग्रेस को कड़ी टक्कर मिलेगी। उनके इस बयान की बहुत चर्चा हुई। माना गया कि खुद राहुल ने राजस्थान में अपनी पार्टी की संभावना को कम कर दिया। इसके बाद राहुल राजस्थान से दूर रहे। नौ अक्टूबर को चुनाव की घोषणा हुई उसके बाद राहुल का एक कार्यक्रम नहीं हुआ। वे २३ सितंबर के बाद पहली बार १६ नवंबर को राजस्थान पहुंचे। तब उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस राजस्थान में स्वीप करने जा रही है यानी बड़ी जीत हासिल करने जा रही है।
सवाल है २३ सितंबर और १६ नवंबर के बीच क्या बदल गया, जिसकी वजह से राहुल को लग रहा है कि पहले जो मुकाबला कांटे का था वह एकतरफा हो गया है? यह सिर्फ राहुल गांधी की बात नहीं है, बल्कि कांग्रेस के सभी नेताओं में भरोसा बना है कि हर पांच साल पर राज बदलने का राजस्थान का रिवाज कांग्रेस बदल देगी। इस बार कांग्रेस लगातार दूसरी जीत हासिल करेगी। कांग्रेस का यह भरोसा कई कारणों से बना है। इसमें कुछ भाजपा की गलतियां हैं और कुछ कांग्रेस का अपना प्रयास है। भाजपा ने चुनाव शुरू होते ही पहला दांव गलत चल दिया। पार्टी ने उम्मीदवारों की जो पहली सूची जारी की उसमें वसुंधरा राजे के कई समर्थकों की टिकट काट दी। साथ ही सात सांसदों को विधानसभा की टिकट दे दी। वह भी ऐसी सीट से, जहां से भाजपा पहले जीती थी।
इससे मैसेज बना कि भाजपा नए नेताओं को उतार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी। लेकिन इसके बाद पार्टी अचानक पीछे हट गई और दूसरी सूची में वसुंधरा सहित उनके कई समर्थकों को टिकट दी गई। टिकट बंटवारे की गड़बड़ी और रणनीति के इस यू टर्न से भाजपा के बारे में पहला मैसेज सकारात्मक नहीं बना। इसके बाद चुनाव के अधबीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित कई नेताओं के यहां केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी से यह मैसेज बना कि भाजपा हताशा में ऐसा कर रही है। कांग्रेस नेताओं के लिए सहानुभूति भी बनी।
दूसरी ओर कांग्रेस ने इस बार आक्रामक तरीके से चुनाव लडऩे का फैसला किया। पहले कांग्रेस जब सत्ता में होती थी तब वह बहुत रूटीन के अंदाज में यह मान कर चुनाव लड़ती थी कि हारना ही है। इस बार बजट पेश करने के साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव का टोन सेट कर दिया। उन्होंने सरकार का खजाना खोल दिया। मुफ्त इलाज से लेकर मुफ्त बिजली और सस्ते सिलेंडर से लेकर महिलाओं के खाते में पैसे डालने तक तमाम तरह की लोक लुभावन योजनाओं की घोषणा कर दीं। कई योजनाएं शुरू भी हुई। चुनाव की घोषणा से दो दिन पहले राज्य में जाति गणना कराने का आदेश भी जारी कर दिया। हर विधायक के क्षेत्र में योजनाएं शुरू कीं और उनका शिलान्यास कराया। तभी राहुल गांधी १६ नवंबर को प्रचार के लिए पहुंचे तो उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सत्ता में आ गई तो वह कांग्रेस की शुरू की गई योजनाओं को बंद कर देगी। जाहिर है कि राहुल गांधी को यह फीडबैक मिली है कि अशोक गहलोत की योजनाओं की अपील लोगों में बनी है और वे उनको दोबारा चुनने के बारे में सोच सकते हैं। सो, गहलोत सरकार की योजनाएं और कांग्रेस की गारंटी के काम करने का भरोसा बना है।
इसके अलावा एक बड़ा काम यह हुआ है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट सार्वजनिक रूप से एक दूसरे के साथ दिख रहे हैं। उन्होंने अपनी लड़ाई को स्थगित कर दिया है। यहां तक कि जब केंद्रीय एजेंसी ईडी ने अशोक गहलोत के बेटे को पूछताछ के लिए बुलाया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के यहां छापे मारे तो कांग्रेस की ओर से बचाव की कमान सचिन पायलट ने संभाली। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके एजेंसी की कार्रवाई की आलोचना की। लंबे समय के बाद यह भी हुआ कि पिछले दिनों सचिन पायलट ने अशोक गहलोत को ट्विट को रिट्विट किया। जब राहुल गांधी जयपुर पहुंचे तो गहलोत और पायलट उनके अगल बगल थे और उन दोनों की मौजूदगी में राहुल ने स्वीप करने का भरोसा जताया। राहुल के २३ सितंबर के कार्यक्रम में पायलट अनमने तरीके से शामिल हुए थे और सिर्फ ढाई मिनट में भाषण खत्म कर दिया था। लेकिन वे अब मेहनत करते दिख रहे हैं। तभी एकजुट होकर लड़ती दिख रही कांग्रेस में जीत का भरोसा बना है।