– श्रुति व्यास
नवेलनी की मौत के बाद रूस में क्या होगा? या यो कहें कि रूस का क्या होगा? पुतिन पर और पूरी दुनिया पर इसका क्या असर पड़ेगा?
हालिया रपटों के मुताबिक रूस दो फांक हो गया है। भौगोलिक दृष्टि से नहीं – जो वैसे भी नहीं हो सकता क्योंकि रूस के अधिकांश हिस्से पर पुतिन का कड़ा नियंत्रण है। रूस के दो टुकड़े इस अर्थ में हो गए हैं कि एक हिस्से में नवेलनी की मौत का जश्न मनाया जा रहा है तो दूसरा हिस्सा मातम और सदमे में है। जो हिस्सा ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा वह शायद ज्यादा बड़ा है। ऐसा इसलिए क्योंकि रूस की प्रेस लगातार लोगों को बताती आ रही है कि पुतिन रूस के नायक हैं और नवेलनी उनके रास्ते में रोड़ा अटकाने वाले खलनायक।
सरकार द्वारा नियंत्रित ‘रशिया टुडे’ (आर.टी.) नवेलनी को बदनाम करने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहा है। नवेलनी को “रुसी राष्ट्रवादी उपद्रवी” बताया जा रहा है और कहा जा रहा है कि उनकी विरासत काफी उलझी हुई और पेचीदा है। नाटो के इस बयान कि नवेलनी की मौत के सिलसिले में पुतिन कई गंभीर सवालों के घेरे में है पर टिप्पणी करते हुए आर.टी. की मुखिया मार्गरिटा सिमोनयान ने एक्स पर लिखा, “पहली बात तो यह है कि रूस कुछ भी करने के लिए बाध्य नहीं है।” जो साफ़-साफ़ नजऱ आ रहा है, उसे भी अनदेखा करते हुए सिमोनयान ने लिखा कि नवेलनी की भ्रष्टाचार-विरोधी तहकीकातों के ‘शिकार’ पांच लोग उन्हें फ़ोन कर अपनी ख़ुशी जाहिर कर चुके है।
इस बीच ऐसी भी खबरें है कि नवेलनी की मौत के दिन मतलब १६ फरवरी को पुतिन लगातार मुस्कुरा रहे थे और काफी उत्फुल्ल नजऱ आ रहे थे। यूराल पर्वत श्रृंखला में बसे चेल्याबिन्स्क शहर में एक कारखाने में वे रिपोर्टरों के साथ हंसी-मजाक करते नजऱ आए। ये तो था ख़ुशी में डूबा पुतिन का रूस। एक दूसरा रूस भी था, जिसमें लोग नवेलनी की मौत का मातम मनाने सड़कों पर उतर आये थे। उनके लिए नवेलनी आशा के प्रतीक थे – पुतिन-मुक्त रूस की आशा के प्रतीक। उनके अलावा रूसी बुद्धिजीवी, जिनमें से अधिकांश दूसरे देशों में रहते हैं, भी नवेलनी की मौत का शोक मना रहे हैं।
रूस के लोग बंटे हुए हैं, इसमें कोई शक नहीं है। और ना ही इसमें कोई शक है कि नवेलनी की मौत के बाद भी पुतिन का कुछ बिगडऩे वाला नहीं है।नवेलनी की मौत ने पुतिन को अति-विश्वास से भर दिया है। यह घटना रूस के पहले से ही बहुत कमज़ोर और दबे-कुचले विपक्ष पर कातिलाना हमला है। घरेलू राजनीति अब लगभग पूरी तरह पुतिन के पंजे में है। अगले महीने होने वाले चुनाव के बाद वे अगले छह सालों के लिए फिर से राष्ट्रपति चुन लिए जाएंगे। जब उनका कार्यकाल ख़त्म होगा तब वे जोसफ स्टालिन से बे लम्बे समय तक राज कर चुके होंगे। स्टालिन सन १९५३ में अपनी मौत के समय २४ साल रूस के सर्वेसर्वा रह चुके थे।
उनके सबसे कटु बैरी की मौत के अलावा, पुतिन के लिए एक और अच्छी खबर है। यूक्रेन के युद्धक्षेत्र में रूसी सेनाएं आगे बढी हैं। यही कारण है कि १६ फरवरी को पुतिन गदगद नजऱ आ रहे थे। पुतिन जानते हैं कि कि किस्मत उनके साथ है। यूक्रेन में वे जीत रहे हैं, चुनाव में वे जीत रहे हैं और रूस की जनता का दिल भी वो जीत रहे हैं। जनता इसलिए खुश है क्योंकि प्रतिबंधों के बावजूद रूस न तो दुनिया में अलग-थलग पड़ा है और ना ही उसकी आर्थिक स्थिति खस्ताहाल हुई है। पुतिन ने नए दोस्त बनाए हैं और नए देश रूस के गठबंधन साथी बने हैं। ग्लोबल साउथ को रिझाने के उनके प्रयास सफल हुए हैं। एक समय पश्चिम के पिट्ठू समझे जाने वाले यूएई और सऊदी अरब में उनका जबरदस्त स्वागत हुआ।
शुक्रवार को जो बाइडन ने बिना लागलपेट के मान लिया कि नवेलनी की मौत होने पर रूस के लिए जिन खौफनाक नतीजों की चेतावनी उन्होंने २०२१ में दी थी, वैसा कुछ होने वाले नहीं हैं।”मगर हम सोच रहे हैं कि और क्या किया जा सकता है,” बाइडन ने कहा। पश्चिम के आगा-पीछा करने से पुतिन की हिम्मत और बढेगी और वे और आक्रामक होंगे। विदेशों में रहने वाले पुतिन-विरोधियों में भी घबराहट का मंजऱ है। उन्हें लगता है कि देश के अन्दर अपने विरोधियों से निपटने के बाद पुतिन विदेशों में बैठे अपने दुश्मनों की तरह रुख करेंगे।
नवेलनी की मौत के बाद उनके समर्थक दुखी हैं – गुस्से में नहीं हैं।
नवेलनी की मौत ने उनके आन्दोलन में एक नया जोश नहीं भरा है, बल्कि एक शून्य निर्मित कर दिया है। और यही पुतिन की जीत है। वे नवेलनी के आन्दोलन के जज़्बे को ख़त्म करने में सफल रहे हैं और यही जज़्बा नवेलनी की सबसे बड़ी ताकत था। उधर यूक्रेन में पुतिन यूक्रेनियाई लोगों का मनोबल तोडऩे की कोशिश में लगे हैं। वहां लगातार बमबारी करते हुए रूसी सेनाएं आगे बढ़ रही हैं। सबसे ताज़ा जीत अव्दीव्का नाम के एक अहम शहर में हुई है जहाँ से यूक्रेन की सेना पीछे हट गई है। अमरीकी सांसद यूक्रेन को सहायता पैकेज मिलने नहीं दे रहे हैं और पुतिन को लग रहा है कि जीत करीब है। आने वाले महीनों में डोनाल्ड ट्रम्प के अगला राष्ट्रपति बनने की सम्भावना है।
ट्रम्प ने नवेलनी के मामले में एक शब्द नहीं कहा है और अगर वे राष्ट्रपति बने तो यह तय है कि वे पुतिन को यूक्रेन में मनमानी करने देंगे। पुतिन को कहीं से कोई डर नहीं है। वे दुनिया को दिखा सकते हैं कि हाँ, बुराई भी जीत सकती है। जैसा कि कार्नेगी रशिया यूरेशिया सेंटर के निदेशक अलेक्जेंडर गाबुएव लिखते हैं, “चमचों से घिरे, बूढ़े होते इस रूसी शासक को पता है कि वह कितनी ही घातक गलतियाँ करे, उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। ऐसे में आगे चल कर वह और ज्यादा मनमानी कर सकता है।”
बात यह है कि दुनिया बदल गयी है।
एक समय था जब दुनिया की सबसे बेरहम और दमनकारी सरकारें भी जानेमाने असंतुष्टों को हाथ नहीं लगाती थीं। इसका एक कारण तो यह था कि वे उन्हें शहीद नहीं बनाना चाहती थीं। पुतिन ने एक शहीद बना दिया है, बल्कि शायद रूस का महानतम नेता भी बना दिया है। मगर वे आसानी से बच निकलेगे, उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। ऐसा नहीं लगता कि उन्हें अपने किए का फल भोगना पड़ेगा। इसका एक कारण तो यह है कि अमरीका और अन्य पश्चिमी देश उस तरह से एक नहीं हैं और ना ही उस तरह का दबाव बनाने में सक्षम हैं जैसा कि वे १९७० और १९८० के दशक में था। ग्लोबल साउथ में जो नए देश शक्ति केंद्र के रूप में उभर रहे हैं उनके नेता केवल सत्ता और संपत्ति के भूखे हैं और अपने विरोधियों से निपटने के लिए पुतिन की राह पर चलने से उन्हें कोई गुरेज़ नहीं है। जब पुतिन कुछ भी करके बच निकलते हैं, तो वे क्यों नहीं? हाँ, दुनिया बदल चुकी है। रूस बर्बादी की ओर जा रहा है और दुनिया उसके पीछे-पीछे है।