राजशेखर चौबे
इस वर्ष ( २०२३ ) दूसरे सावन वाला अगस्त माह सुकून देने वाला है । हम सभी व्यंग्यकार शताब्दी वर्ष के बहाने बिसराए जा चुके हरिशंकर परसाई जी को याद करने में लगे हुए हैं । मैं भी २० अगस्त को भिलाई में उनकी याद में रखे गए कार्यक्रम से वापस लौटा था । उनकी यादें ताजा थी । परसाई जी दो दिन बाद ही मेरे सपने में आए और बोले – उठो , उठो । कुछ तो लिखो , कुछ अच्छा लिखो ।
इतने बड़े लिक्खाड़ के सामने मेरी बोलती बंद थी । मैं पूरी तरह जाग गया था फिर भी सोने की एक्टिंग करता रहा ।
परसाई – जो सो रहा है उसे जगाया जा सकता है परंतु जो सोने की एक्टिंग कर रहा है उसे जगाया नहीं जा सकता ।
मैं डर गया मुझे लगा कि वे अंतर्यामी है । मैं तुरंत उठ गया और उनकी टूटी टांग के चरण स्पर्श किए । उनकी टांग ही नहीं टूटी थी बल्कि पूरा शरीर जर्जर प्रतीत हो रहा था । वे सौ बरस के ही लग रहे थे ।
मैं – क्या आज देश भी सोने का नाटक कर रहा है ?
परसाई – नहीं सोने का नाटक व्यंग्यकार कर रहे हैं । मैं किस-किस को जगाऊं । आजकल मुद्दों की नहीं फेक न्यूज़ की चर्चा होती है ।
मैं – नहीं सर । आज भी एक से बढ़कर एक समर्थ व्यंग्यकार हैं और वे लिख भी रहे हैं । उन्हें सैकडों लाइक और कमेंट मिलते हैं ।
परसाई – कहां , फेसबुक पर ।
मुझे आश्चर्य हुआ मैंने कहा आप फेसबुक व्हाट्सएप आदि के बारे में जानते हैं ।
परसाई – स्वर्ग में सब सुविधा है पर व्यंग्य के विषय नहीं हैं । फिर भी मुझे लगता है कि काश आज मैं इंडिया में होता ।
मैं (डरकर )- सर इंडिया नहीं भारत बोलिए अन्यथा मेरे यहां ई डी ,सी बी आई आ जाएगी । आप तो स्वर्ग में बैठकर मजे लेंगे । परसाई – मैं न पहले डरा न अभी होता तो डरता । वैसे डरने वाले को व्यंग्य लिखना ही नहीं चाहिए । क्यों क्या ख्याल है ? उन्होंने व्यंग्यकारों की दुखती रग पर उंगली रख दी थी ।
मैंने बचाव की मुद्रा अखि़्तयार कर ली । मैं – आज अधिकतर लोग डरे हुए हैं । खैर आप यह बताइए आपने ऐसा क्यों कहा कि काश आज आप भारत में होते । परसाई ( हंस कर ) आप भी इंडिया से भारत पर आ गए। यह कोई पूछने वाली बात नहीं है । आज जितनी भी विसंगतियां समाज और देश में है उतनी कभी भी नहीं रही । यह आप लोगों के लिए स्वर्णिम अवसर है । इस मौके पर मैं भरपूर और जरूर लिखता और शरद भी पूरी शिद्दत से लिखते ।
मैं – आज हम व्यंग्यकार क्यों लिख नहीं पा रहे हैं और विरोध लोकगायकों , कवियों , कार्टूनिस्टों एवं एक्टिविस्टों द्वारा ही किया जा रहा है । ऐसा क्यों ?
परसाई – इसके लिए आप लोगों को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। आप लोगों ने अपने गोल पोस्ट बदल दिए हैं । आगे आप समझदार हैं ।
मैं – हम लोग अभी भी आपको शिद्दत से याद करते हैं । पूरे देश में आपका जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जाएगा । आपके स्तुतिगान में कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता । क्या आप इससे प्रसन्न नहीं होते ?
परसाई – मैं इससे दुखी रहता हूं कि ऐसे ऐसे लोग मेरी पूजा कर रहे हैं जो सत्ता की भी अर्चना कर रहे हैं । उन्होंने तल्ख़ लहज़े में
कहा – मेरे शब्दों में कहूं तो सत्ता की दलाली कर रहे हैं । मैं ( वातावरण को हल्का करने के लिए )- अपने “इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर ” लिखी थी लेकिन संयोग देखिए आपका सौवें जन्मदिन पर चंद्रयान -३ चांद पर सकुशल उतरने वाला है । यह सरकार अच्छा काम कर रही है ।
परसाई (हंसकर )- एक दल ने
” सदाचार का तावीज़ ” पहन लिया रखा है और जो भी भ्रष्ट उनके दल में शामिल होता है उसे भी यह तावीज़ पहना दिया जाता है । यह तावीज़ केंद्रीय एजेंटीयों से उनकी रक्षा करता है ।
मैंने भी उनकी हां में हां मिलाई । आपने तो पहले ही लिख दिया था “कर कमल हो गए ” ।
परसाई – आपने मेरे मुंह की बात छीन ली । अब कर लोटस हो जाते हैं और वहां जाकर लेट जाते हैं। मैं – आपने लिखा है स्वतंत्रता दिवस भीगता है और गणतंत्र दिवस ठिठुरता है । इस स्वतंत्रता दिवस पर घोषणा हुई है कि देश उनके तीसरे टर्म में तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा ।
परसाई – देश भले ही तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाए । क्या गरीब का भला होगा ? देश को आज गांधी की जरूरत है लेकिन गोडसे को ढूंढा जा रहा है । देश धीरे-धीरे २०४७ की ओर नहीं १९४७ की ओर बढ़ रहा है । मैंने पहले ही लिखा है – ” दंगे से अच्छा गृह उद्योग इस देश में दूसरा है ही नहीं ” । यह गृह उद्योग अब काफी फल फूल रहा है । हमारा गणतंत्र लगातार सिकुड़ रहा है । आज मैं होता तो ठिठुरता हुआ गणतंत्र नहीं सिकुड़ता हुआ गणतंत्र लिखता।
मैं – क्या आप निराश हैं ?
परसाई – नहीं बिल्कुल नहीं । हाँ मुझे व्यंग्यकारों से कोई उम्मीद नहीं है परंतु देश की जनता पर पूरा भरोसा है कि वह सही समय पर सही फैसला लेगी । इतना कहकर परसाई जी अंतर्ध्यान हो गए । मुझे लगा कि उनका व्यक्तित्व कितना विशाल है और हम व्यंग्यकार उनके सामने कितने छोटे हैं ।