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नस्लीय लड़ाई का इलाका है नागोर्नो-काराबाख़

श्रुति व्यास

क्या आपको नागोर्नो-काराबाख़ ध्यान में है? रूस के पड़ौस का वह इलाका जहां सन् २०२० में में लड़ाई छिड़ी थी। भारत में हिंदी की कुछ लंगूरी टीवी चैनलों ने तब भविष्यवाणी की थी कि यह लड़ाई नए विश्वयुद्ध की शुरुआत है। विश्व युद्ध तो खैर नहीं हुआ परन्तु ४४ दिन तक अजरबाइजान और अर्मेनिया में चली लड़ाई ने पूरे इलाके को तबाह किया।रूस दोनों के बीच का पंच था। रूस की आर्मेनिया के साथ संधि थी और अजऱबैजान के साथ दोस्ती। उसने पहल करके युद्ध विराम करवाया।वही काम उसने बुधवार को फिर किया है। दोनों में अचानक लड़ाई छिडी वह बेकाबू होती तभी युक्रेन में फंसे रूस कूटनीति की और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक खबर है कि अजरबाइजान और अर्मेनिया के बीच लड़ाई रोकने, संघर्षविराम पर सहमति बनी है। अजरबाइजान के रक्षा मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि नागोर्नो काराबाख में सैन्य अभियान रुक गया है।
तीन साल बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के अधबीच, नागोर्नो-काराबाख़ की शांति ड्रोनों और सायरनों की आवाज़ से अचानक भंग हुई।१९ सितम्बर को अजऱबैजान ने अपने ही देश में स्थित इस आर्मेनियाई एन्क्लेव में फौज़ी कार्यवाही शुरू की और यूरोप में चिंता बनी कि एक ठंडी पड़ चुकी लड़ाई के संकट को फिर से झेलना होगा।
दरअसल समुद्र से दूर अजऱबैजान की सीमा के भीतर स्थित नागोर्नो-काराबाख़ एक पहाड़ी इलाका है। यह सोवियत संघ के गठन के पूर्व से ही विवादित रहा है। जब तक आर्मेनिया और अजऱबैजान सोवियत संघ का हिस्सा थे तब तक दोनों के बीच तनाव दबा रहा। परन्तु शीत युद्ध के ख़त्म होने और कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण ढीला पडऩे से नस्लीय विवाद फिर से भड़क उठा।
पूरी दुनिया नागोर्नो-काराबाख़ को अजऱबैजान का हिस्सा मानती है परन्तु इस इलाके के अधिकांश रहवासी आर्मेनियाई हैं और वे एक सदी से भी लम्बे समय से अजऱबैजान के शासन का विरोध करते आए हैं। सन १९९१ में लगभग १.५ लाख आबादी वाले इस क्षेत्र ने स्वयं को आजाद घोषित कर दिया। तब से ही वह आर्मेनिया की मदद से स्वयं को शासित कर रहा है। वह अपने आप को अर्टसख गणतंत्र कहता है, हालाँकि उसे दुनिया की मान्यता नहीं मिली है।
अजऱबैजान के रक्षा मंत्रालय ने हमलों को “आतंकवाद-विरोधी कार्यवाही” बताते हुए कहा कि इनका उद्देश्य नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र में संवैधानिक व्यवस्था की पुनर्स्थापना करना और वहां से हथियारबंद आर्मेनियाई अलगाववादियों को बाहर धकेलना है। इसके विपरीत, आर्मीनिया का कहना है कि अजऱबैजान के हमले का असली उद्देश्य काराबाख़ के अर्मेनियाई लोगों की नस्लीय सफाई करना है। यह बात आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिन्यान ने भी कही है।
नागोर्नो-काराबाख़ के एक्स (पहले ट्विटर) मानवाधिकार ओम्बड्समैन के अनुसार वहां दर्जनों लोग मारे गए हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं। बिजली सप्लाई बंद कर दी गई है और छह समुदायों के नागरिकों को बाहर कर दिया गया है।
लड़ाई फिर से शुरू हो जाने से लगा कि दोनों पक्षों के बीच कूटनीतिक चैनलों के ज़रिये समझौता करवाने के रूस और पश्चिमी देशों के प्रयास असफल हो गए हैं। आर्मेनिया कई हफ़्तों से कह रहा था कि अजऱबैजान अपनी सेना को दोनों देशों की सीमा, जो दुनिया के सबसे ज्यादा सैनिक मौजूदगी वाले इलाकों में से एक है, के नज़दीक ला रहा है। अजऱबैजान ने नागोर्नो-काराबाख़ को आर्मेनिया से जोडऩे वाले एकमात्र रास्ते, जिसे लाचिन कॉरिडोर कहा जाता है, को पिछले साल के अंत से बंद कर रखा था ताकि इस इलाके के नेतृत्व को घुटने टेकने के लिए मजबूर किया जा सके। इसके नतीजे में इलाके में खाने-पीने की चीज़ों, दवाईयों और ईंधन की ज़बरदस्त कमी हो गई। बाकू (अजऱबैजान की राजधानी) में सरकार ने ९ सितम्बर को घोषणा की वह कॉरिडोर को खोलने के लिए तैयार है बशर्ते नागोर्नो-काराबाख़ को अजऱबैजान से जोडऩे वाली सड़क को खोल दिया जाए।
कुल मिलाकर, अजऱबैजान चाहता है कि नागोर्नो-काराबाख़ उसका हिस्सा बन जाए। इसका अर्थ होगा वहां रह रहे १२०,००० अर्मेनियाई नागरिकों का कत्लेआम या उनका पलायन। यह भी हो सकता है कि उनके साथ ज़बरदस्ती की जाए और उन्हें अजऱबैजान की प्रभुता स्वीकार करने पर मजबूर किया जाए। जो भी हो, यह साफ़ है कि अजऱबैजान, नागोर्नो-काराबाख़ की ज़मीन और उसके लोगों पर अपना राज कायम करना चाहता है। बाकू की सरकार ने यह साफ़ कर दिया है कि नागोर्नो-काराबाख़ उसके देश के अन्य क्षेत्रों के समकक्ष होगा। अजऱबैजान इस इलाके को कोई विशेष दर्जा देने या वहां के लोगों को सुरक्षा की गारंटी देने के लिए तैयार नहीं है।
अजऱबैजान में २,००० रूसी शांति सेना मौजूद हैं। उन्हें युद्धबंदी के बाद वहां इसलिए रखा गया था ताकि वहां फिर से युद्ध न भड़कने पाए। जाहिर है कि ये शांति सेना असफल रही। व्लादिमीर पुतिन, यूक्रेन के युद्ध के दलदल में बुरी तरह फंसे हुए हैं और पूर्व सोवियत संघ के प्रान्तों (जो अब अलग देश हैं) पर उनका कोई असर नहीं रह गया है। यही कारण है कि अजऱबैजान और आर्मेनिया अपना झगडा सुलझाने के लिए रूस की शरण में जाने की बजाय आपस में भिडे।
आर्मेनिया, अमरीका की गोदी में जा बैठा है। हाल में उसने एक छोटी सी सैनिक कवायद आयोजित की, जिसमें मुट्ठीभर अमरीकी सैनिकों ने भाग लिया। इसमें रूसी सेना को कोई भूमिका नहीं दी गयी। आर्मेनिया, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का सदस्य बनने की कोशिश भी कर रहा है। यह वही कोर्ट है जिसने व्लादिमीर पुतिन के नाम गिरफ़्तारी वारंट जारी किया था जिससे मास्को बहुत नाराज़ है। जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि आर्मेनिया में रूस के प्रशंसकों की संख्या में ज़बरदस्त गिरावट आई है। उन्नीस सितम्बर को आर्मेनिया की राजधानी येरवान की मुख्य सड़कों पर नागरिकों का एक बड़ा जुलूस निकला जिसमें लोग नारे लगा रहे थे: “रूस हमारा दुशमन है।”
इस बीच अजऱबैजान तुर्की और इजऱाइल के नज़दीक खिसक गया है और इन दोनों देशों से हथियार खरीद रहा है। साफ़ है कि इस पूरे इलाके में रूस का दबदबा कम हो रहा है और यही कारण है कि वहां लड़ाई फिर शुरू हुई जबकि तुर्की, ईरान, यूरोपियन यूनियन और तंगहाल रूस – सभी के लिए दक्षिण कॉकस अहम है।इसलिए अमेरिका, रूस सहित कई देशों ने लड़ाई तुरंत बंद करने की अपील की। जवाब में अजरबाइजान का कहना था कि अलगाववादियों के समर्पण करने के बाद ही हमले रुकेंगे। बुधवार कोरूस और संयुक्त राष्ट्र ने अजरबाइजान के अलग हुए नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र में लड़ाई को समाप्त करने का आह्वान किया। ताजा सैनिक भिडंत में
इन सब के बीच, अजरबाइजान के राष्ट्रपति ने कहा, “अवैध अर्मेनियाई सशस्त्र बलों को सफेद झंडा फहराना चाहिए. नहीं तो, आतंकवाद विरोधी उपाय अंत तक जारी रहेंगे।”
दो नागरिकों सहित २७ लोगों की मौत की खबर है। १६ गांवों से कोई ७,००० से अधिक लोगों को निकाल कर सुरक्षित ठिकानों पर ले जाया गया। अलगाववादियों की माने तो अजरबाइजान ने टैंक, हवाई जहाज और ड्रोन से हमले किए। इसलिए संघर्षविराम पर सहमति के बाद सैन्य अभियान भले थमा मगर अजरबाइजान का रूख गडबड है। अजरबाइजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीयेव का अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को फोन पर यह कहना कि अर्मेनियाई अलगाववादियों ने “हथियार डाल दिए” तो नागोर्नो-काराबाख में अजरबाइजान का अभियान समाप्त हो जाएगा कोई शांति की भाषा नहीं है।

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