बचपन में मां ने नारी का किरदार निभाया है,
उसने ही तो हमे ठीक से चलना, बोलना और पढ़ना सिखाया है।
उम्र जैसे बढ़ी तो पत्नी ने नारी का रूप दिखाया है,
उसने हर परिस्थिति में हमे डटकर लड़ना सिखाया है।
फिर बेटी ने नारी का रूप अपनाया है,
दुनिया से प्यार करना सिखाया है।
और तो क्या ही लिखूं मैं नारी के सम्मान में,
हम सब तो खुद ही गुम हो गए हैं अपने ही पहचान में।
-सरोजिनी नायडू



