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न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌।

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌।

कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥

अर्थ: इस श्लोक के माध्यम से श्री कृष्ण मनुष्य के द्वारा कर्म करने की महत्ता की व्याख्या कर रहे हैं। उनके अनुसार इस धरती पर जन्म लेने वाला चाहे मनुष्य हो या अन्य कोई जीव जंतु, उन सभी के द्वारा हर समय कर्म किया जाता रहता है व कोई भी बिना कर्म किये जीवित नहीं रह सकता है। इस सृष्टि के द्वारा सभी जीव जंतुओं व मनुष्यों को कर्मो के द्वारा ही आगे बढ़ाया जाता है।

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