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आर्थिक अपराधियों पर नरमीआर्थिक अपराधियों पर नरमी

संसद की एक समिति ने कहा है कि आर्थिक अपराधों के लिए हिरासत में लिए गए लोगों को रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के आरोपियों की तरह हथकड़ी नहीं लगाई जानी चाहिए।
भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों से संबंधित स्थायी संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह अनुशंसा की है।
रिपोर्ट राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दी गई है। समिति ने गिरफ्तारी के १५ दिनों के बाद किसी आरोपी को पुलिस हिरासत में रखने के मुद्दे पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में बदलाव करने की सिफारिश भी की है।
गौरतलब है कि बीएनएनएस के खंड ४३ (३) में कहा गया है, ‘पुलिस अधिकारी अपराध की प्रवृत्ति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय हथकड़ी का उपयोग कर सकते हैं, जो आदतन अपराधी है, जो हिरासत से भाग गया है या जिसने संगठित अपराध, आतंकवादी कृत्य का अपराध, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध किया है।’ समिति ने कहा है कि ‘आर्थिक अपराध’ शब्द में अपराधों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है।
इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले सभी मामलों में हथकड़ी लगाना उपयुक्त नहीं हो सकता।
यह रिपोर्ट प्रस्तावित कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-२०२३), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएनएस-२०२३) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-२०२३) से संबंधित है। गत ११ अगस्त को लोक सभा में पेश किए ये तीन विधेयक कानून बनने पर भारतीय दंड संहिता, १८६०, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, १८७२ की जगह लेंगे।
दरअसल, सरसरी तौर पर इस अनुशंसा को देखने पर लगता है कि समिति ने आदतन और इत्तफाकन अपराधी में भेद किया है। बेशक, आचरण को देखकर गंभीर से गंभीर अपराधों में दोषसिद्ध व्यक्ति के प्रति भी कानून नरमी बरतता रहा है।
और आचरणगत व्यवहार के प्रति संजीदगी दिखाने कानून की समाज के प्रति संवेदनशीलता भी दिखलाई पड़ती है, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि यह मसला केवल आचरण भर का नहीं है। ज्यादातर आर्थिक अपराध जान-बूझकर किया गया अपराध होता है, और नियोजित तरीके से अंजाम दिया जाता है। ऐसे अपराधी के प्रति नरमी समझ से परे है। इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि ऐसे अपराध में ज्यादातर वांछित देश से ही भाग खड़े होते हैं।

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